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________________ ६० जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा का ज्वलन्त उदाहरण है । समीक्षा एकान्त से किया गया निरूपण जैनधर्म को मान्य नही I है । आप लिखते है, गुणों के अस्तित्व से गुणी की पूजा होती है। अस्तित्व न होते हुए भी संबंध होने पर भी गुणी की पूजा होती है, द्रव्यनिक्षेप में भूत-भविष्यकालीन गुणवत्व संबंध से पूजनीकता आएंगी, अतः गुण न होते हुए भी देव, प्रभुके निर्जीव शरीर की पूजा वगैरह करते हैं, श्रावक गुरु के निर्जीव शरीर का सत्कार - पूजनादि करते हैं । अहमदनगर (महाराष्ट्र) में स्थानकवासी आचार्य आनंद ऋषिजी का देहावसान हो गया तब बाहर गांव से सैंकडो बसों में भरकर स्थानकवासी आए और धूमधाम से अग्नि संस्कार किया गया ऐसे ही आ. तुलसी व. आ. महाप्रज्ञ जो आपके ही भाई है उनका भी अग्निसंस्कार हुआ । महाप्रज्ञ के जडदेह को दो दिन तक अभक्ष्य बर्फ के बीच रखा गया था । क्यों ? कहिए - देह तो जड हैं ? आत्मा कहां है ? यहाँ आत्मा तो परलोक में चली गई थी, अब जड़ शरीर ही था, तो उसके लिए बस - कार आदि की हिंसा करके इतने स्थानकवासी लोग क्यों वहाँ गये ? क्यों इतनी बर्फ आदि की हिंसा की ? और उस वक्त स्थानकवासी संतो ने घोषणा करवायी, गौरव किया और अनुमोदना की कि बाहरगांव से ५०० बसें आयी थी इत्यादि । अब बोलो शरीर के लिए इतना आरंभ-समारंभ हिंसा क्यों ? और संतो द्वारा इसकी अनुमोदना क्यों ? आप ही सोचे । फिर उनकी अग्निसंस्कार की भूमि पर स्मारक निर्माण क्यों करवाया ? तब वहाँ जड़ स्मारक के लिए या जड़ के लिए हिंसा का विरोध किसी भी स्थानकवासी ने क्यों नहीं किया । स्थापना निक्षेप में गुणवान् शक्तिशाली प्रतिष्ठाचार्य द्वारा आरोपित गुणवत्व होता है अत: पूजनीयता आएगी । विज्ञान ने भी 'आईडीअल रीएलीटी' द्वारा प्रयोगों के माध्यम से सिद्ध करके बताया है की कल्पना से भी वास्तविकता की प्राप्ति होती है । मृत्युदंड के गुनाहित को 'तुम्हे कोब्रा नाग से डसवाकर मारेंगे' इस प्रकार अनेक दिन टोर्चर करके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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