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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा हरण कर लिये । समीक्षा → मूर्तिपूजा आज्ञा विरोधी कहना मताग्रह है, शास्त्रों में कहीं पर भी मूर्तिपूजा का विरोध नहीं है । झगड़ों की बात लिखी है वह तो अपनी अपनी श्रद्धा होती है वहाँ प्रशस्त राग या दृष्टिराग के कारण झगड़े होते ही है कोई मुहपत्ती का डोरा तोड़े, रजोहरण फेंक देवे तो स्थानकवासी झगड़ा नही करेंगे ? स्थानकवासी वर्ग में भी आपस में अनेक झगडे सुनायी देते ही है । प्राणहरण की धमकियाँ तक सुनायी देती है । ५७ बिलावास (पाली) में स्थानकवासी संत आचार्य श्री हस्तीमलजी म. के समाधिस्थल का विवाद कोर्ट (न्यायालय) तक पहुंचा है। राजकोट में मुख्य स्थानक के लिए धीरज मुनि के द्वारा ६-७ साल पूर्व बडी बडी लडाई हुई थी । ऐसे तो अनेक दृष्टांत हैं । स्थानकवासी तेरापंथियों के साथ मकान - जमीन के लिए लडाई-झगडे करते देखे गये हैं । पृ. ५उपकरणों के उपयोग से इन्द्रियों का विषय पोषण नहीं होता, किन्तु मूर्ति पूजा से पांचों इन्द्रियों का स्पष्ट विषय पोषण होता है । गान, तान, वाजिंत्र, दीपराशि, नृत्य, सुगन्धित पुष्प, फल, इत्र, केशर, नैवेद्य, स्नान, मर्दन आदि कार्यों में पांचो इन्द्रियों का विषय पोषण खुल्लम-खुल्ला होता है । यदि स्पष्ट कहा जाए तो जिस जैनधर्म का सिद्धान्त पुद्गल त्याग है, मूर्ति-पूजा से उल्टा पुद्गलासक्त - पुद्गलों में मस्तरहना प्रतीत होता है । जो श्रृंगार सामग्री विलास भवनों तथा नाट्यशालाओं में होती है, प्रायः उसी प्रकार की सामग्री मूर्ति के महालयों-मंदिरो में पाई जाती है। ऐसे स्थानों में गया हुआ मनुष्य पुद्गलों में मस्त होकर ही लौटता है । कोई-कोई तो काम वासना में गोते लगाते पाये जाते हैं । समीक्षा → “जे आसवा ते परिसवा" इस आचारांगजी के सूत्र से डोशीजी परिचित होंगे ही जो आश्रव का कारण है - वही संवर का कारण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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