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॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्री जीरावला पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा ॥
७. जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा प्रवेश की समीक्षा
पृ. ४. → शास्त्रों में उपकरणों का जो विधान किया गया है वह आवश्यक और अनिवार्य होने से ही उपादेय है तथा इन उपकरणों की गणना भी की गई है । किन्तु ऐसे धार्मिक उपकरणों में सर्वज्ञ महर्षियोंने मूर्ति का तो नाम भी निर्देश नहीं किया । इन उपकरणों को उचित साधन समझकर ही ग्रहण करते है । इनमें ममत्व बुद्धि नहीं रहती, किन्तु मूर्ति तो साध्य की तरह मानी जाती है और इसके द्वारा आसक्ति अधिक बढ़ती है । उपकरणों को कम करने तथा समय पर त्यागने की भावना रहती है, परन्तु मूर्ति को तो अपनाये रखने की ही बुद्धि रहती है उपकरणों के उपयोग में हिंसा नहीं होती, परन्तु मूर्ति की पूजा में त्रस तथा स्थावर जीवों की हिंसा होती है ।
जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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समीक्षा → ग्रंथ का देह बढ़ाने हेतु कुतर्क पेश किया गया है । क्योंकि शास्त्रो में उपकरणों की बात सांधुओं के लिए है, उनको मूर्ति का परिग्रह होता ही नहीं है । उनके लिए प्रभु दर्शन - भावपूजा का विधान है । गृहस्थ तो परिग्रहधारी ही होते है, वह मूर्ति रखे उसमें कोई आपत्ति है ही नहीं एवं मूर्ति भी साधन ही है, आलंबन ही है । सूत्रालम्बन अर्थालम्बन मानने वालों को प्रतिमालंबन भी स्वीकार करना चाहिए। चूँकि सूत्र - अर्थ भी जड ही है। स्वरुप हिंसा का विवेचन भी पूर्व में किया है । अतः डोशीजी की कुकल्पनाएं व्यर्थ हैं ।
पृ. ५किन्तु मूर्ति पूजा आप्त आज्ञा रहित और हिंसा युक्त होने प्रभु आज्ञा की विरोधिनी है । उपकरणों के लिए किसी प्रकार की लडाई नहीं होती, किन्तु मूर्ति के लिए ऐसे-ऐसे झगड़े हुए, जिसमें समाज छिन्नभिन्न हो गये । लाखों करोड़ों का पानी हुआ, और हो रहा है । यहाँ कि केशरिया तीर्थ में तो पूजक, महानुभावों ने अपने ही भाईयों के प्राण
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