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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा मतभेद कोर्ट (न्यायालय) सुधी पहोंच्यो छ । स्थानकमार्गी गुरुओंना फोटो राखवाना विषयमां अनेक गामोमां लडाई-झगडा राग-द्वेष थाय छे तो फोटो केम लगाडे छे ?
पृ. ३७ → पोतानी समजण शक्ति मुजब पोताने जे कल्याण कारक लागतुं होय तेने प्रामाणिक पणे ते स्वीकारे के सत्कारे तेमा बीजा कोईने वांधो होई शके ज नही, पण पोतानी मान्यता अन्य सर्व कोई ए स्वीकारवी ज जोइए एवो दुराग्रह करनारने माटे एटलुं ज कही शकाय के ते श्री वीतरागना मार्गने वीतरागदेवना धर्मने थोड़े अंशे पण समज्या नथी अने एथी ए वधु खराब तो ए छे के पोतानी मान्यताथी इतर मान्यता वालाने द्वेष बुद्धिथी निंदवा, तेना सद्गुणने पण दुर्गुणना रुपमा चितरवा, अनेक प्रकारना अवर्णवादो बोलवा, ए तो हरकोईने माटे खरेखर पामरंता ज छे, एटलुं ज नहीं पण सामाने कषायादि उत्पन्न करावी पोते अनंत संसारी बनवानी साथे अन्यने पण ए चक्रावामां घसडे छे । वस्तु स्वरुपे एम होवू जोइए के पोतानी मान्यताथी विरुद्ध मान्यता वालाने शान्ति थी समजाववा उपदेशवा अने एम करीने पोताना सहधर्मी बनाववा, ए प्रयत्न अवगणना करवा लायक नथी, परन्तु पोतानी मान्यता सामी व्यक्ति न स्वीकारे तो तेनी उपेक्षा करवी, पण तेनी अवगणना के तेना पर क्रोधादि करीने आत्मघात तो न ज करवो जोइए।
समीक्षा → आ आखा फकरामा लखेल वातो डोशीजीने लागु पडे ज छे. पृष्ठ ३८ उपर मुनिश्री लखे छे "मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास" नामनी पुस्तिका मुनिजीए लखी पण ते जो मंडनात्मक लखी होत तो स्थानकवासीना कोईने पण ए पुस्तक संबंधी कांई कहेवार्नु होय ज नही।" आवा प्रकारनो उपदेश तेओ डोशीजीने आपी शक्या नही ? शुंडोशीजीए मूर्ति, मूर्तिपूजक, मूर्तिपूजक साधुओ बधाने भांडवानुं पोतानी पुस्तकमां बाकी राख्युं छे ? बंने पुस्तको जोडे राखी कोई वांचे तो स्पष्ट थशे ज्ञान-सुंदरजी करता वधारे कटु शब्दो-आक्षेपो-कटाक्षो डोशीजीना पुस्तकमां मळशे, भूमिका लखता पहेला छोटालालजी मुनि तेमनु ते. तरफ ध्यान दोरवी न शक्या ?
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