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- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा एथी बलिकर्म एटले स्नाननी विशेष शुद्धिनी क्रिया-शरीरना प्रत्येक अङ्गोपांगनी कालजी पूर्वकनी शुद्धि केटलाक स्नान करे छे त्यारे मात्र शरीर पर पाणी ढोले, पण प्रत्येक अङ्गोपांगनी शुद्धि तरफ बेदरकार रहे तो भविष्यमा स्नान करवा छतां रहेली अशुद्धिना कारणे घणा रोगो उत्पन्न थाय छे, अने जो विधिपूर्वक स्नान थाय तो घणा रोगो उत्पन्न थता अटकी जाय छे ए अशुद्धि टालवा माटेनी खास कालजी एज बलिकर्म, कारण के एना पछीनो जे पाठ "पायच्छित्ता"छे ते सूचवे छे के स्नान अने बलिकर्म करीने पाछली एटले स्नान कर्या पहेलानी जे जे शारीरिक अशुद्धि-दोष हता ते सर्व ने दूर कर्या ।
समीक्षा → अत्रे बलिकर्म अने प्रायश्चित्तना जे स्नानपछीनी विशेष शुद्धि अर्थ को छे तेना माटे कपोलकल्पना सिवाय कोई प्रमाण खरु ? बलिकर्मनो एवो अर्थ व्याकरण लोकव्यवहार वगेरे कोई पण द्वारा सिद्ध थतो नथी । कपोलकल्पित आगमोना अर्थाने समजु प्राज्ञलोको प्रमाण नथी मानता । प्रायश्चित्तनो अर्थ पापनो नाश, शरीरना मेलनो नाश अर्थ क्यांथी लाव्यो ? एटले टीकाकारोए करेल पूर्वपरंपराथी आवेल शुद्ध अर्थने ज प्रामाणिक मानवो जाईये ।
आगममा सम्यक्त्वी के मिथ्यात्वी संबंधी प्रकरणोमां बधे बलिकर्मनी वात स्नान पछी आवे छे ते सुचवे छे के स्नान पछी पूर्वकाले पोतपोताना इष्टदेवनी संक्षिप्त के विस्तारथी पूजाविधिनी सार्वत्रिक प्रचलना हती. जेम हालमा पण घणा श्रद्धालु कुलोमा कोई सूर्यनी सामे पाणी अर्पण करे, कोई पीपले पाणी रेडे कोई घरमा राखेल मूर्तिने धूप-दीप वगेरे करे एवा अलगअलग स्व-स्वपरंपरागत विधानो देखाय छे. तेने ज शास्त्रोमां बलिकर्म" शब्दथी सूचव्या छे. सम्यकत्वीना इष्टदेव अरिहंत परमात्मा ज छे तेथी बलीकर्म शब्दथी अरिहंतपरमात्माना मूर्तिपूजानी स्पष्ट रीते सिद्धि थाय ज
* कहीं कहीं स्थानकमार्गी संत कयबलिकम्मा का अर्थ कुल्ला किया(कोगलाकर्या) ऐसा असत्य लिखते हैं।
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