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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
पृ. ३३ → आवो परम पवित्र पश्चात्ताप ए परमात्मा-अनन्तज्ञानी परमात्मानी साक्षीए होई शके, के जेओ पश्चात्तापना शुद्ध स्वरूपने यथार्थ रुपे समजी शके एवा-सर्वज्ञ प्रभुनी हाजरीना अभावे कदाच कोई वर्तमान काले जेओ शास्त्रज्ञ होय, हृदयना उदार अने सरल होय, जेओ शास्त्रानुसार वर्तन करनार होय तेवानी साक्षीए आलोयणा करवानी होय, अने तेमना अभावे कोई समभावी उदारचित्त संघनी साक्षीए आलोयणा थई शके । परन्तु जे जड़ पदार्थ छे, जेने मन संकल्प विकल्प जेवी वस्तु पण नथी जेने ज्ञान दर्शन पण नथी तेनी साक्षी होइज शु शके ? साक्षीने पोताने पोतानुं ज्ञान भान नथी तेवा खरेखर जड़ पदार्थनी साक्षीए आलोयणा न ज होई शके।
समीक्षा → पक्ष राग केवो छ ? सूत्रकार तो "सम्मभावियचेइय''ना अभावमां पूर्व के उत्तर दिशाभिमुख आलोचना करवानुं बतावे छे त्या कोई पण आलंबन नथी डोशीजी पोते पण कोईपण आलंबन सिवाय ईशान खुणामा मोढुं राखी आलोचनानुं सूचवे छे (जो के ए पोताना मनथी कहे छे सूत्रमा तो पूर्व के उत्तर दिशा ज बतावी छे) तो मूर्तिना आलंबने आलोचनामा शुं वांधो आवे ? टीकाकार ते वातने कहे ज छे. एकलव्ये जडमूर्ति समक्ष ज साधना करी धनुर्विद्यामा अद्वितीय प्रवीणता मेलवी ते प्रसिद्ध छे । तेमज जैनेतरो मूर्ति आगल सोगंध वगेरे करे ते पोते पण स्वीकार्यु ज छे ।
कोर्ट (न्यायालय) मां जड किताब गीताजी पर हाथ राखी सोगंध खाए छे. ते तो तमारा ध्यानमां हशे ज?
पृ. ३४ → प्रतिमानी प्राचीनता कही बतावीने ते पूजनीय छे एम कहेवू ए तो भोला बालकोने भरमावी उन्मार्ग गामी बनावा जेवू छे कारण के प्रतिमाजीनी प्राचीनता ए कोई महत्वनी बाबत नथी, कारण के घणी त्याज्य वस्तु पण प्रतिमाजीथी ए अनन्त काल प्राचीन छ । पाप आश्रव बन्ध वगेरे घणा प्राचीन छे सोमलादि विष-झेर-ए पण बहुकालना जुना छे, एवी अनेक वस्तुओ अनादि कालनी प्राचीन छे, पण तेथी ते ग्राह्य छे, वन्दनीय-पूजनीय छे, एम कोई डाह्यो मनुष्य न ज कहे।
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