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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा ५१ मनुष्यथी घरनी महत्ता छे कांई घरथी मनुष्यनी कीमत नथी, अर्थात् तीर्थंकर नामकर्मनुं निमित्त तीर्थंकर देवना गुणग्राम छे, नहि के तीर्थंकर देवनी बनावटी मूर्ति | समीक्षा → अत्रे मुनिश्री पोताना पक्षने सिद्ध करवा एकांत मार्ग अपनावी जैनदर्शनना अनेकांतमार्गने तिलांजली आपे छे. केवी रीते ? ते विचारीये “अमुक घर घणु खानदान छे आ प्रयोग मुनिश्रीए अपनाव्यो छे, आ प्रयोग स्पष्टपणे जडपूजानी सिद्धि करे छे. आ प्रयोग लोकमा प्रचलित छे प्रामाणिक गणाय छे, आधार आधेयभाव संबंधथी मकान अने व्यक्तिनो अभेद मानी उपचारथी आवो प्रयोग थाय अन्यथा आवो प्रयोग थात ज नही कारण के घर तो जड छे. जड खानदान नथी होतु ! परंतु ए घरमा रहेनार माणसो खानदान छे आवो ज प्रयोग थात ! एवीज रीते आत्मा अने शरीरनो भेदाभेद संबंध छे, तेमांथी अभेदनी विवक्षा करी शरीरने पण तीर्थंकर कहीए छीए, मूर्तिमां पण भेदाभेद छे अभेद पक्षने लई ते-ते देवनो उल्लेख थाय छे आ वात लोकथी अने शास्त्रथी प्रमाणित छे । आ अभेद पक्षने लईने ज साक्षात् तीर्थंकरनुं शरीर वंदनीक पूजनीक छे तेवी ज रीते अभेदनी विवक्षाथी ज तीर्थंकरनी मूर्ति पण वंदनीक पूजनीक छे ज । पृ. ३० श्री ज्ञाताजी सूत्रना प्रथम अध्ययनमां पाठ छे के " तत्तेणं सुमिणपाठगा सेणियस्सरन्नो कोडंबिय पुरिसेहिं सदाविया समाणा हट्ठा तुट्ठा जाव हियया पहाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता ।" अर्थात् त्यार पछी ते स्वप्नपाठको श्रेणिक राजाना कौटुम्बिकना बोलाव्याथी हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हृदयवाला थया, न्हाया बलिकर्म कर्यु यावत् कौतुक मङ्गल प्रायश्चित कर्यु अर्थात् पाछली अवस्था टाली । एज अध्ययनमां मेघकुमार दीक्षा लेवा तैयार थया त्यारे हजामने बोलावे छे, ते हजाम पण स्नान बलिकर्म करीने आवे छे एम दरेक ठेकाने स्नाननी साथे बलिकर्म कहेल छे. एटले स्नान होय त्यां बलिकर्म होय ज, अने ते बलिकर्म पाठनी पाछल " पायच्छित्ता" पाठ पण होय ज,. — Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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