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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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बीजा भवमां तेज आत्मा देव पण बने त्यारे पूजनीक नथी । एटले जड शरीर अने नामनी अपेक्षाथी ज गुणगान शक्य छे.
जैन शास्त्रो देह-आत्मा, नाम-आत्मा वगेरेमां भेदाभेद माने छे एकांत भेद नथी तेथी नाम अने शरीर ए जड होवा छता तेमनुं गुणगान अभेद पक्षे थाय ज छे.
स्थानकवासी संत कालधर्म (मृत्यु) पामे छे त्यारे ओमनो ठाठथी अग्निसंस्कार आदि विधि केम करो छे ? मृतशरीर Dead Body तो जड छे जडनो आटलो मान-सन्मान केम ?
पृ. २८ जो जड वस्तु पूजनीय वंदनीय होय तो श्री तीर्थंकर देवना स्थूल उदारिक देहमांथी आत्मा परम पदे पहोंच्या पछी ते शरीरने देवो पोतानी शक्ति वडे तेने हजारो वरस सुधी जालवी राखत अने तेनी पूजा अर्चना करत पण जड वस्तु पूजनीय न होवाथी ज श्री जिनेश्वर देवना शरीरने अग्निने आधीन करे छे, अथवा अग्नि संस्कार करी तेनी राखने क्षीर समुद्रमां पधरावी दे छे ।
समीक्षा पूजनीय छे माटेज दाढ़ाओ अस्थि देवलोकमा पूजाय छे। औदारिकदेह तथा स्वभावे वधारे कालसुधी टकतो नथी. बगडी जाय छे ते स्पष्ट छे माटे राखता नथी । जड राखने क्षीरसमुद्रमां केम पधरावे ? तेनी कोई आशातना न करे माटे ज-ते स्पष्ट छे. तेथी देवो कलेवरना राखने पण पूज्य माने छे सिद्ध थाय छे । माटे जड अपूजनीय ए तमारी वात शास्त्रथी ज असिद्ध थाय छे ।
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पृ. २९ → अने वंदनीय पूजनीय छे ते पण चैतन्य जड़ नहीं, एटले तीर्थंकर नामकर्मनी उपार्जना तीर्थंकर देव तरीके रहेला आत्माना नहिं के तेना शरीरना के तेनी मूर्तिना, गुणग्राम करवाना व्यवहारमां पण 'अमुक घर घणुं खानदान छे" एम जे वखाणाय छे ते घर एटले पत्थर ईंट के चूना माटीथी बनेलुं ते नहि पण ए घरमा रहेनार मनुष्यो सचारित्रवान् - उत्तम नीतिवाला होय तेथी ज ए घर वखाणाय छे,
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