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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा पव्वाणीसुय उस्सवेसुय जनेसुय छणेसुय अप्पच्छिमे दरिसणे भविस्सति त्तिकट्ट ओसिसगमूले ठवेति ।"
____ अर्थ : जमालि क्षत्रिय कुमारना निष्क्रमण योग्य अग्र केशो चार आंगल मुकीने कापे छे, त्यारपछी जमालि क्षत्रिय कुमारनी माता हंसना जेवा श्वेत पट-साटक थी ते अग्रकेशोने ग्रहण करे छे, ग्रहण करीने ते केशोने सुगंधी गंधोदकथी धुए छे धोइने उत्तम अने प्रधानगंध तथा माला वडे पूजे छे, पूजीने शुद्ध वस्त्र वडे बांधे छे, बांधीने रत्नना करंडियामां मूके छे, त्यार पछी जमालि क्षत्रिय कुमारनी माता हीर पाणीनी धारा सिंदुवार ना पुष्पो अने तुटी गयेली मोतीनी माला जेवा पुत्रना वियोगथी आंसु पाडती आ प्रमाणे बोली के "आ केशो अमारा माटे घणी तिथिओ, उत्सवो, यज्ञो, अने महोत्सवोमां जमाली कुमारना वारंवार दर्शन रुप थशे एम धारीने तेने ओशिकाना मूलमां मूके
छे।
समीक्षा → अहीं छोटालालजी मुनि कहे छे "रागवश थई माता पुत्रना केशोनुं पूजन करे" तो ते राग प्रशस्त उपादेय के अप्रशस्त हेय? आगममा तेनुं वर्णन करायु छे, अने व्यवहारथी पण ते राग प्रशस्त उपादेय ज स्पष्ट पणे देखाय छे । जेम कोई शिष्य पोताना कालधर्म पामेल गुरुर्नु रजोहरण राखी तेनुं वंदन वगेरे करे ते प्रशस्त राग छे, हेय नथी उपादेय छे ते रीते अत्रे पण समजवू । तेथी आ उदाहरण द्वारा तो दाढ़ा पूजन प्रशस्त - उपादेय अने भक्तिपूर्वकनुं सिद्ध थाय छ ।
पृ. २८ → परन्तु ते स्तुति ते गुणानुवाद देहना नामना के जड़ वस्तुना नहिं पण चैतन्यना कारण के अनन्त ज्ञान दर्शननो धारक सिद्ध स्वरुपी अने शाश्वत गुणनो धारक आत्मा छे, नहि के देह अथवा जड मूर्ति । जड़ एतो नाशवंत अने त्याज्य वस्तु छे. तेनी उपयोगिता तो तेमा अनन्त गुण धारक आत्मा होय त्या सुधी ज पछी जराए नहि ।
समीक्षा → आ एकांत जैन दर्शनने मान्य नथी । केमके गुरुना गुणगान तेमना नामथी तेमज आ भवमा जे पर्यायरुपे शरीर मळ्यु छे तेनाज थाय छे । एकलो आत्मा अरुपी-अनामी छे तेना गुणगान शुं करे ? वली
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