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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा चार विसामा बतावेल छे तेमा सामान्य व्रत, पच्चक्खाण, सामायिक, पौषधादि अने संयम वगेरे करेल छे पण क्यांय प्रतिमा वंदन - पूजन विश्रान्तिनुं स्थान कहेल नथी तेम ज त्रीजे ठाणे त्रण कारणे करी देवने पश्चाताप-खेद थवानुं कहेल तेमा ( १ ) छती अनुकूलताए ज्ञानाभ्यास न कर्यो (२) श्रावक पणु शुद्ध न पाल्यु अने ( ३ ) संयमीपणु शुद्ध न पाल्युं, एत्रण कारणे देवने खेद थवानुं कहेल छे पण क्यांय पहाड़ पर्वतनी यात्रा न करी के प्रतिमादिनुं पूजन न कर्यु तेना माटे खेद थवानुं श्री वीतराग देवे कहेल नथी । समीक्षा श्रावकपणु शुद्ध पालवाना माटे सम्यक्त्व शुद्ध जरुरी छे, सम्यक्त्व आलावामा जिन प्रतिमा सिवाय बीजीने न मानवी एटले जिनप्रतिमाने ज मानवी - पूजवी वगेरे । तेथी श्रावकपणाना शुद्ध पालनमां प्रतिमा-पूजनादि अंतर्गत ज छे तेथी जुदा कहेवानी आवश्यकता नथी । T ४५ पृ. १७" धम्मेसुणं चरमाणस्स पंच निस्साट्ठाणा पण्णत्ता तं जहा १ छ: काय २. गणो ३. राया ४. गाहावई ५. सरीरं अर्थात् छः काय, गण, राजा, गाथापति, अने शरीर ए पांच अवलम्बन कह्या, पण धर्म के जे आत्मानो गुण अथवा आत्म मल दूर करवानुं पवित्र साधन ए धर्मना आधार रुपे प्रतिमाजी के कोई पण स्थावर तीर्थ बतावेल नथी, ए उपरथी पण सिद्ध थाय छे के धर्मकार्य- आत्मकल्याण माटे मूर्तिपूजानी मूर्तिनी क्यांय पण जरुरियात श्री जिनेश्वर देवे स्वीकारेल नथी । समीक्षा : ठाणांगमा पांच निश्रास्थान = · अबलंबन कह्या छकायगण,-राजा, गाथापति, शरीर मूर्ति न कही एम कहो छो तो तेमा तो, गुरु पण क्या बताव्या छे ? तो शुं गुरुनी आत्मकल्याण माटे जरुरीयात नथी एम मानशो ? पृ. १७ शाश्वती प्रतिमा अने ते पण श्री जिनेश्वरदेवनी प्रतिमा शाश्वत होई शके ज केवी रीते ? जे वस्तु अनादि अनंत होय ते ज शाश्वत, तो जिनेश्वर देवनी प्रतिमा होय तो कोई पण काले ते जिनेश्वर देव थया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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