SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ - जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा होवा जोइए, एटले एमनी आदि थई अने ए जिनेश्वरदेवना शरीरनो अन्त पण होय ज, एटले ए अनादि अनंत न ज कहेवाय । अने अनादि अनन्त ज होय ते जिनेश्वर देवनी प्रतिमा न होय, ए सर्व मान्य सत्य छ । समीक्षा → आ बधा अज्ञानताभर्या तर्को छ । भाव जिनेश्वर शाश्वत नथी माटे स्थापना जिन शाश्वत नथी अम केवी रीते कही शकीए ? बनेना उपादान जुदा छे - एकनु पंचेंद्रिय शरीर छे ज्यारे बीजानु उपादान एकेन्द्रिय शरीर छे । परिकरवाली यक्ष-भूतादिनी प्रतिमा तमे शाश्वत मानोज छो ने ? तो जिन प्रतिमाथीज केम द्वेष राखो छो? ते प्रतिमाओ द्रव्यथी शाश्वत पर्यायथी अशाश्वत छे, जेम मेरु पर्वत-देवलोकना विमानो बधा द्रव्यथी शाश्वत पर्यायथी अशाश्वत छे, तेमज जिन प्रतिमाओ पण समजवी, जिनप्रतिमारुपे शाश्वत, अंदर पुद्गलो बदलाया करे तेथी पर्यायथी अशाश्वत । ए चार नामवाला जिनेश्वर त्रणकालमा गमे त्यारे होय ज छे, तेथी नामथी शाश्वत होवाथी तेमनी शाश्वती प्रतिमाओ छे एमा विरोध जेवू छे ज नही ।, बीजु, तेने जिनप्रतिमा न मानी बीजा देवनी प्रतिमा तमे मानो तेमा एवा क्या देव होय ते शाश्वत होय ए तमारे आपत्ति उभी ज छे। जो बीजा देवोनी शाश्वत प्रतिमा तमे मानी शको तो जिनप्रतिमा शाश्वत मानवामा तमारे शुं वाधो ? जिनप्रतिमा साथे ज द्वेष केम ? भगवतीनो पाठ अत्रे जिनप्रतिमा मा लागु पडतो नथी समुच्चय बंधनो संख्यातो काळ बताव्यो छे, ज्यारे प्रतिमा मा कोई प्रकारनो बंध छ ज नही, मकान-वावडी वगेरे जे इंट-चुना वगैरेथी जोडाण करी बनावे ते समुच्चबंध कहेवाय छे. प्रतिमा अखंड जोडाण वगरनी ज होय छे. तेथी ए वात प्रतिमामा लागु न थाय । पृ. १९ → कनक एटले सोनु-सुवर्ण खरं अने कनक एटले धतुरो पण खरो, कनक नामे धतुरो लेवाथी कांई तेना आभूषणों थोडाक ज बनी शके छे ? नामनी साथे तेनामा ते गुण होवा जोइये, गुण पूजनीय छे नाम नहि, घणीए गंगा, सरस्वती, गोदावरी नामे बहेनो गंधाती अने गोबरी होय छे, ए जन समाजथी क्यां अजाण्यु छ ? एटले वर्धमानादि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy