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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा वाद में स्था. छोटालालजी को पाट पर खडे होकर माफी मांगनी पडी ।
दूसरा ठोस प्रमाण यह भी है ज्ञानसुंदरजीने अपनी पुस्तक में सत्य समझने पर जो अनेक-अनेक स्थानकवासी संतों का उल्लेख किया है जो सनातन मूर्तिपूजक में दीक्षित हुए । सत्य की हमेशा विजय होती है। मध्यस्थ संत सही समझने पर मोक्षाभिलाषी होने से सही मार्ग पर आए वह उचित है । यथा, विजयान्दसूरीश्वरजी(आत्मारामजी) म.सा., ज्ञानसुन्दरजी इत्यादि । ऐसा उदाहरण एक भी सुनने में नही आया कि मूर्तिपूजक साधु पंथ छोडकर स्थानकवासी में दीक्षित हुए। यह क्या बता रहा है, तटस्थ खुद ही निर्णय करें ।
"तब से स्थानकवासी समाज ने निर्णय किया है कि मूर्ति व मुंहपत्ति संबंधित वाद किसीसे नहीं करना क्योंकि इसमें स्थानक मत कमजोर सिद्ध होता है ।" ( देखिए पंजाबी साध्वी भानुमति की टिप्पणी)
- हीमांशुभाई जैन __चन्द्रोदय परिवार
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