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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा नहीं होगा। इसे आप भाव निक्षेप में ले जाओ तो वह गलत है, जिसकी चर्चा आगे की जाएगी । दूसरी बात अतीत-भावि तीर्थंकर जो द्रव्य जिन है, वे गुणहीन होने से आपके हिसाब से अपूज्य बनने चाहिये । अतीत जिन सिद्ध बने इसलिए पूज्य मानो तो भी अरिहंत रुप से तो वे अपूज्य ही होंगे न ? इसीलिए आपके हिसाब से पद की व्याख्या अशक्य होगी । पद को नमस्कार कैसे करेंगे ?
दूसरी बात यह है वर्तमान २४ तीर्थंकर भी हाल मोक्ष में है वे द्रव्य तीर्थंकर है, अरिहंत के १२ गुणों से युक्त नही हैं, उनको अरिहंतरुप में मानना आपके हिसाब से अयुक्त होगा, सभी-स्थानकवासी लोगस्स सूत्र द्वारा अरिहंत रुप से उनकी स्तुति करते है वह कैसे उचित होगा ? आपकी मान्यता से तो जिनके जो गुण हो उन गुणों से युक्त ही उस पद के योग्य है ।
पृष्ठ ७ → "हाँ तो जैनधर्म में किसी का लिहाज़ नही है, यहाँ तो गुणों के पीछे पूजा है । यदि जड पूजा का महत्व होता तो तीर्थंकर प्रभु के शव को मसालादि भरकर मंदिर में सुरक्षित रखा जा सकता था, जैसा कि अन्य देशों में शवों में मसाला भरकर रखा जाता है । क्योंकि पाषाण मूर्ति से शव ठीक ही था, जिसमें अब चाहे गुण न रहे हों, पर पूर्व में तो उनमें गुण थे ही । जबकि पाषाण मूर्ति में न कोई पहले और न ही बाद में कोई गुण है ? वस्तुतः गुणों की आराधना एवं गुणी की सेवा भक्ति करने से ही उनके गुण आत्मा में प्रकट होते हैं । जड पूजा, मूर्ति पूजा में ऐसे कोई गुण दृष्टि गोचर नही होते, जिनकी पूजा अर्चना करने से जीव के अन्दर आध्यात्मिक गुणों का कुछ विकास होता हो । अतएव जडपूजा, मूर्तिपूजा गुणों की अपेक्षा से भी जिनागम विपरीत है ।
समीक्षा -→ प्रभु के शरीर को मसाले भरकर रखने की बात कुतर्क है । चाहे कोई भी उत्तम पुरुष क्यों न हो ६ मास बाद उनके औदारिक शरीर की स्थिति क्या होती है, यह सब शास्त्र को जानने वाले जानते ही है । प्रभु के शरीर में मसाले भरने की कल्पना कितनी द्वेषपूर्ण एवं बेढंगी
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