SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा महामोहनीय कर्मोदय हो तब ही कोई जीव जिनशासन को नुकसान पहुँचानेवाली बातों को जन मानस पर थोपता है । कल्पना कीजिए एक व्यक्ति पिता का परम भक्त है यदि कोई उसके ही सामने उसके पिता के चित्र पर कालिख पोत दे तो क्या होगा ? हृदय को कितना अपार दुःख अनुभव होगा । कहने की आवश्यकता नही है कि चित्र भले जड हो परन्तु मन के भावों को हृदय में से अवश्य प्रकट करता ही है एक चित्र हजार शब्दों से ज्यादा प्रभावशाली है। जिस मूर्तिपूजा विरोधी रत्नमाला ग्रंथ के प्रकाशन ने लोगों की भावनाओं को बिगाडने का काम किया है वह मूर्ति की तरह पुद्गल जड़ शब्द है । डोशीजी ने पुस्तक में शब्द आधार आदि को भी विरूद्ध रूप से अपनाए हुए है। जैसे श्रेष्ठ शब्दों के संयोजन पढने से अच्छे भाव आते है वैसे ही अरिहंत या तीर्थंकर की मूर्ति में उनके गुणों को देखना ही चाहिए जिससे सम्यग्दर्शन निर्मल बनता है । डोशीजीने व्यक्तिगत रूप से जो कुछ भी मंथनपूर्वक लिखा है उसमें विचारों को पूरी तरह से एकान्तिक रखकर मूर्तिपूजा के विरोध में अपनी बात सिद्ध करने का मात्र मिथ्या प्रयास किया गया है। जिनाज्ञा विरूद्ध कुतर्क को विचार में लाने से आत्मा को कितना नुकसान उठाना पडता है। जो भवभीरू है, वही भवभ्रमण से भय खाता है अतः आत्मज्ञान हो तो मिथ्याभाषण से बचना चाहिए। इस पुस्तक में जो. जो मुख्य बातें है उनके ही मात्र सुसंगत जिज्ञासा समाधान के लिए हमने जो प्रयास किया है उसे पाठक चिन्तन मननपूर्वक पढ़ेंगे तो अवश्य ही सत्य का अन्वेषक पथ पायेगें । इस प्रकाशन में निमित्त है - 'अखिल भारतीय सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर' से प्रकाशित 'जैनागम विरूद्ध मूर्तिपूजा' का पुनर्मुद्रण उसमें भी विशेष तौर से नेमिचंदजी बांठिया लिखित 'निवेदन' कारणभूत है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy