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परिशिष्ठ - ७ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
जिस प्रकार युद्धप्रयाण के समय सैनिक भरत बाहुबली, अर्जुन, हनुमान, खारवेल, महाराणा प्रताप, शिवाजी जैसे वीरों के आदर्श सामने रखकर अपने में अतुल शक्ति का संचय करता है, उसी प्रकार आत्मा भी परमात्म मूर्ति सन्मुख भक्तियोग के माध्यम से उच्च आदर्श को सामने रखते हुए अपनी आत्मशक्ति का उजागर करता है एवं भगवद्भ तक पहुँचने की पराकाष्टा भी कभी प्राप्त कर लेता है ।
वर्तमान में भी बडे स्थानों में, प्रमुख मार्ग में महान एवं राजकीय पुरुषों का स्टेच्यु - प्रतिमा लगाई जाती है, जिससे जनता को उनके कार्यों की प्रेरणा मिलती है ।
अमेरिका के न्यूयोर्क में प्रवेश करते ही वहाँ पर स्वतंत्र देवी का ६० फूट ऊंचा स्टेच्यु बनाया गया है, जिसे देखने से प्रेक्षक के मन में अमेरिकन लोगों की स्वातन्त्र्य की भावना का अनुमान किया जाता है ।
मन एक समुद्र जैसा है, उसमें कई लहरे तरंगे पैदा होती रहती है । प्रभु प्रतिमा दर्शन से भी मन में वीतरागता की भावना जागती है, मन में आनंद हर्ष की लहरें फैल जाती है, जीवन में उच्च प्रेरणा मिलती है ।
जिनेश्वर भगवंत को साक्षात् कल्पवृक्ष की उपमा दी गई है, जिनके पावन दर्शन से दुरित - पापों का ध्वंस होता है, वंदन से वांछित इष्ट की प्राप्ति होती है एवं पूजन से लक्ष्मी की पूर्णता मिलती है ।
भक्त सिर्फ दर्शन ही नहीं, वंदन, पूजन, ध्यान, स्तवन आदि में उल्लसित एवं लीन बनकर आत्म संतृप्ति को पाता है ।
ज्ञानी महर्षि पुरुषों कहते है कि जो मूर्ति को जिनसम मानकर भक्ति से दर्शन, वंदन, पूजन करता है, उसके पाप का पंक साफ हो जाता है, विनय, विवेक, औदार्य, संयम, सेवा आदि सद्गुणपुष्प की
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