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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-७
प्राचीन भारत में स्तूप, गुफाएँ, मंदिरों का अतिशय सर्जन हुआ। बिहार, उडीसा के भुवनेश्वर की उदयगिरी, खंडगिरि की हाथी गुफाएँ, सितानवाजल की गुफा, नासिक के पास २,४०० वर्ष प्राचीन गुफा, एलोरा के गुफामंदिर, गुजरात में गिरनार के, मथुरा के स्तूप ये सब जैनमूर्ति, जैन स्थापत्य एवं जैन चित्रकला का बेनमून ज्वलंत प्रतीक है ।
पूरे एशिया में ही नहीं, बल्कि पूरे दुनिया में आश्चर्यकारी ऐसे शत्रुंजय पर्वत (गुजरात) के छोटे विभाग में हजारों जिनप्रतिमाओं से युक्त अनेकानेक जिनमंदिरो का निर्माण यह विश्व का अभूतपूर्व रिर्काड है ।
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आबु देलवाडा अचलगढ, राणपुर, कुंमारीयाजी तारंगा आदि अनेक तीर्थों का इतिहास एवं इनकी भव्यता आज भी इतनी ही प्रेरणादायक है ।
किमती रत्नों से लेकर मामूली रेत से बनी हुई लाखों नहीं, अपितु करोडों जिनमूर्तियों से यह भारतवर्ष की धरातल विभूषित एवं मंडित बनी हुई है । आज भी वह परम्परा अक्षुण्ण चालु है, जिसमें हजारों लाखों दानप्रेमी भक्तभावुकों द्वारा मंदिरों की भव्यता एवं जिनशासन की शोभा वृद्धिगत हो रही है ।
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'अपनी आत्मा को पवित्र एवं महान बनाने का केन्द्रस्थान मंदिर है, जहाँ भक्तियोग की उपासना - साधना की जाती है। मंदिर का वातावरण पवित्र होता है, ईफक्टिव और रिसेप्टिव होता है, वहां पर निर्मल भावों का शुभ परमाणु का संचय होता है। जहां पर बैठने से बुरे विचार, विनष्ट हो जाते है, परमात्म मूर्ति देखने से देहाभिमान गलित हो जाता है, एवं आत्मविशुद्धि के साथ उत्कृष्ट एवं प्रबल पुण्य का निर्माण होता है ।
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