________________
२९८
परिशिष्ठ-७ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
चेनलों जो हमारी भारतीय संस्कृति की अस्मिता को खत्म करने की सुरंगे है उनका ही बहिष्कार एवं विरोध करें ।
अपनी मुख्य प्रस्तुत बात है नाम, आकृति, चित्र एवं मूर्ति में क्रमशः भावोद्दीपन की शक्ति अधिक निहित है ।
महाराष्ट्र की अजंता एवं एलोरा के गुफामंदिरों में जो हजारों सालों के प्राचीन है, उनमें भी कैलाश गुफा का शिल्प जीवंत एवं बेनमून है । जहाँ तीर्थंकर-जिनेश्वरों की भी मूर्ति है, जिन्हें देखते ही मानो हमारे सामने साक्षात् भगवान है ऐसी परिकल्पना साक्षात् होती
है।
आज
आज से करीब दो हजार वर्ष से भी पहले हुए महाराजा संप्रति ने सवा करोड जिनप्रतिमाओं का निर्माण करवाया था, उनमें से वर्तमान में भी हजारों प्रतिमाएं जिनमंदिर में विराजित है, जो अत्यंत... चित्ताकर्षक एवं नयनरम्य है।
आधुनिक सुप्रसिद्ध भूस्तरशास्त्री विद्वान ने लिखा है कि यदि दस मील की परिधि में खुदाई की जाय तो संस्कृति का एक प्राचीन अवशेष तो कम से कम मिलेगा ही।
भगवान महावीर के पश्चात् महाराजा श्रेणिक, नंदीवर्धन, उदायी, चंडप्रद्योत, संप्रति, खारवेल, चन्द्रगुप्त, कुमारपाल आदि अनेक राजाओं ने जैन मूर्तिओं की स्थापना की थी एवं जैन धर्म का महात्त्वपूर्ण प्रसार किया था ।
मोहनजोदडों और हडप्पा जो कि करीब ५,००० वर्ष पूर्व की संस्कृति थी, उस भूमि के खनन करने से भगवान आदिनाथ आदि की मूर्तियाँ उपलब्ध हुई है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org