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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-७
२९७ चित्र की असर ज्यादा काल तक हमारे मन भीतर में गहरे रूप में अवस्थित रहती है। इसलिए तो कामुकता एवं वासना को भडकानेवाले चित्रों एवं दृश्य देखना ब्रह्मचर्य और जीवनशुद्धि के लिए नितांत वर्जित है । वर्तमान समय में पाश्चात्य अंध अनुकरण से या
आधुनिक विलासभर वातावरण से जगह-जगह पर खराब एवं विकृत चित्रों दृश्यमान होते जा रहे है । बिभत्स और विकृत चेष्टावाले पोष्टरें
और सिनेमा-टी.वी. के वीडिओं केटेस के कामुकता एवं हिंसा की उत्तेजना करनेवाले दृश्यों से भारतीय सुसंस्कारी प्रजा में भी नैतिकता एवं संस्कारिता का स्तर कितना घटता जा रहा है ? कितनी हिंसा का व्याप बढा है ? यह हम नजरों से देख रहे है ।
आज महती आवश्यकता है कि...
खराबी और भ्रष्टता के सामने सुंदरता का अधिक फैलाव हो इसलिए हम हमारी संस्कृति के धरोहर समान मंदिरो का महत्व बढाये...
एक अंग्रेजी लेखक ने इस तरह ब्यान दिया था - यदि भारतीय महाप्रजा का विनाश करना है, तो उसके मूल समान भारतीय संस्कृति का विनाश कर दो... क्योंकि संस्कृति मर जायेगी... प्रजा अपने आप मर जायेगी । लेकिन संस्कृति को खत्म करना है तो क्या करना? तो जिससे संस्कृति आज तक इतनी पनपी है, जहाँ से दिव्य प्रेरणाएँ मिलती है. ऐसे मंदिरों को ही खत्म कर दो... ।
To kill people to kill Culture To kill Culture to kill Temple.
यही कारण से यदि हमारे में सद्बुद्धि, संस्कारिता एवं दीर्घदृष्टिता है तो हम मंदिरों का विरोध नहीं बल्कि पूर्ण समर्थन करेंगे। विरोध मंदिरो का नहीं, अपितु जगह - जगह पर फैला रहे हजारों लाखों थियेटरो, टी.वी., वीडियो, झी.टी.वी., एम.टी.वी. वगेरे सेंकडों
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