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परिशिष्ठ-७ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा जिससे उसकी रौद्रभावना खत्म होकर उसने शत्रु तानसेन के साथ शत्रुता मिटाकर पक्का मित्र बना दिया ।
मन्त्रीश्वर पेथडशाने आबू के पर्वतीय विभाग में सुवर्णसिद्धि को सफल करके जब वहाँ के रमणीय जिनमंदिर में वे आदीश्वर प्रभु की मूर्ति का दर्शन करते है तब अपनी सुवर्ण के प्रति मूर्छा खत्म हो जाती है और वहाँ प्रभु के सामने प्राप्त हुई सभी सुवर्ण महोरों का
उपयोग सात क्षेत्र में ही करने का संकल्प करते है। .. मूर्ति की प्रभावकता के ऐसे कई हजारों प्रसंग भूतकाल के और वर्तमानकाल के है, जो कि अत्यंत प्रेरणादायक है ।
यह है मूर्ति की अद्भुत प्रभाविकता... | यह है मूर्ति की मानसिक गहरी असर । मूर्ति एक आकार है, और आकार यानी-चित्र की सर्वत्र असर
बच्चों को पहले या आज प्राथिमक ज्ञान देने के लिए सचित्र पुस्तकों का उपयोग ही किया जाता है । सायन्स, भूगोल, हिस्टरी आदि कई विषयों को बड़े विद्यार्थीयों को सीखाने के लिए भी प्रचुर मात्रा में चित्र, आकार एवं नक्शे आदि का उपयोग किया जाता है । जैन धर्म के तत्त्वों को पदार्थों को समाझाने के लिए भी सचित्र पुस्तकों का उपयोग होने लगा है।
कहा जाता है कि एक ओर हजार शब्द है और दूसरी ओर सिर्फ एक ही चित्र है तो दोनों में से चित्र की असर ज्यादा रहेगी। विज्ञापन एवं जाहेरातकला के विकास में भी आकार एवं चित्र की ही तो महत्ता है । अकाल के समय का करुण दृश्य एवं कत्लखाने के अति करुण चित्र एवं शाकाहार प्रदर्शनी वगैरे देखकर आज भी जनसमूह के दिल में अनुकंपा-जीवदया की लागणी पुष्ट हो जाती है ।
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