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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-७
प्लेन, कार, रोबोट यन्त्र आदि जड होते हुए भी कितना कार्यशील रहता
है ।
तो फिर... अनेक शुभ भावना एवं विधि के परिष्कार से युक्त प्रभु प्रतिमा में इतनी प्रभावकता एवं चमत्कृति आये इसमें कोई आश्चर्य नहीं है ।
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कितने लोग कहते है कि मूर्ति तो स्थापना है, लेकिन स्थापना में भी चमत्कार है । वह निक्षेप एवं नय भी है । पूर्वकाल में सती स्त्री जब उसका पति विदेश में जाता है तो पति के पादुका या फोटुचित्र पर ही अपने दिन पसार करती थी । भरत ने भी बड़े भ्राता श्रीराम के विरह में राज्य सिंहासन पर श्रीराम की पादुका स्थापित की थी और उसके माध्यम से उनके द्वारा ही राज्य चलता है ऐसा घोषित किया
था ।
मूर्ति में मनोवैज्ञानिक असर भी गहरी है, जो व्यक्ति के मन भीतर तक छू लेता है । स्थूल से सूक्ष्म की ओर, प्रत्यक्ष से परोक्ष की ओर एवं संकीर्णता से कोचले में से निकल कर विशाल अंतर व्योम की ओर ले जाने की उसमें सक्षम शक्ति निहित है । पापी को पाप के गहरे अंधेरे में से निकालकर प्रभु मूर्ति पुण्य के प्रकाश की ओर ले जाने की भी उसमें अद्भुत शक्ति है ।
नामदेव नामक लुटेरा भी प्रतिदिन परमात्ममूर्ति के सामने दस मिनट बैठने की प्रतिज्ञा से एक दिन उसके जीवन में एसा चमत्कार हुआ कि उसने सदैव के लिए खून, हत्या, लूट वगेरे सब पापों को तिलांजलि दी और वह संत नामदेव बन गया ।
बैजु बावरा भी अपने प्रतिस्पर्धी एवं शत्रु संगीत सम्राट् तानसेन का खून करना चाहता था लेकिन एक दिन वह किसी मंदिर में पहुंच गया और वहाँ प्रभुभक्ति में संगीत के माध्यम से ऐसा तल्लीन बन गया,
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