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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
(३) और श्री गौतमस्वामीने १५०० तापस-संन्यासियों को दीक्षा देकर-केवलज्ञान रुप अक्षयलक्ष्मी की प्राप्ति करवायी थी, इसलिए कहते हैं - वांछित फल दातार.
(४) ऐसे श्री गौतमस्वामी का हम सदैव स्मरण करते हैं ।
पर स्थानकवासी संत ये सभी बातें या तो जानते नहीं है, और जानते हैं तो - तीर्थ, तीर्थयात्रा, जिनालय की बात आयी इसलिए वे इसे छिपाते हैं। फिर भी श्लोक बोलते हैं, पर परमार्थ-रहस्य बताते नहीं है। यह उनकी अप्रामाणिकता है।
यानि स्थानकवासी परंपरा बेबुनियाद व अनागमिक है । उनका कार्य सिर्फ जिनमंदिर और जिनमूर्ति का विरोध करने के सिवाय दूसरा कुछ नहीं है।
और स्थानकवासी लोग भी जिनभक्ति-अरिहंत की पूजा-चैत्यवंदनस्तुति-स्तवन जैसे पवित्र आचार-विचारों को छोडकर साईबाबा, गणपति, जलाराम, रामदेवपीर, संतोषी मां, अंबा-भवानी, वैष्णोदेवी, आदि मिथ्यात्व में चढ़कर, सन्मार्ग से भटक गये हैं । उनके संत - उनके गुरु उनको उन्मार्ग पर भटका रहे हैं।
परमकृपालु परमात्मा श्री अरिहंतदेव को प्रार्थना है कि - उन सभी को सन्मति-सन्मार्ग-अरिहंतभक्ति मिले ।
इस पूरे लेख में जिनाज्ञा से विपरीत कुछ भी लिखा गया हों तो त्रिकरण-त्रियोग से क्षमाचाहता हूँ ।
. लि. हेरतभाई प्रमोदभाई
चन्द्रोदय परिवार
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