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________________ परिशिष्ठ-७ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा (५०) मूर्ति - श्रेष्ठ आलंबन | आराधना में आगे बढ़ने के लिए... .. उपासना में उज्जवलता लाने के लिए.... भक्ति में भव्यता का रंग प्रकट करने के लिए.... परमात्मा की मूर्ति एक सफल एवं पुष्ट आलंबन है । नयन और मन से सम्मिलित बनकर परमात्म मूर्ति को देखकर जो एक दिव्य भावना एवं भक्ति का पवित्र स्त्रोत भक्त आत्मा के अंतर पट पर प्रवाहित होता है उसका अद्भुत आनंद वही भक्त अनुभूत कर सकता है, उसे शब्द में संजोना बडा मुश्किल है। मूर्ति के प्रतिकृति, प्रतिमा, बिम्ब, अर्चा आदि पर्यायवाची नाम है जिसके माध्यम से ही हम यह रौद्र एवं दुःखपूर्ण भवसागर पार करने की क्षमता धारण कर सकते है । भवसागर को पार करना है, तैरना है तो प्रवहण नौका समान जिनमूर्ति है । साक्षात् प्रभु के विरह में प्रभु के जैसे ही कार्य करने की अप्रतिम शक्ति जिनमूर्ति में समाविष्ट है । कोई यदि प्रश्न करें कि बिना मूर्ति ही हम आराधना के क्षेत्र में प्रगति हासिल कर सकेंगे तो यह बात तथ्य से सम्मत नहीं है। जैसे अन्ध मनुष्य के लिए बिना लकडी जैसे आलंबन माईलों का पंथ काटना अशक्य है वैसे ही भवजंगल का दुर्गम पंथ को अल्लंघन-पार करना और मोक्ष मंजिल तक मूर्ति के आलंबन बिना पहुंचना सचमुच अशक्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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