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________________ २७९ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-३ प्रतिमाएं है, अतः इसी कारण से गणधर भगवंतो ने जान बुझकर इनका वर्णन किया है परन्तु कैसा समझना यह अपनी-अपनी मरजी पर है। यदि ये जिन प्रतिमाएं जो कि अवधिजिन अर्थात् अविरति असंयमी की है तो इनकी पूजा भक्ति का लंबा-चौड़ा वर्णन कर गणधर भगवंतों ने भल की हैयह मानना होगा। अन्यथा ये जिन प्रतिमाएं केवली भगवंत (तीर्थकर प्रभूकी केवली अवस्था की प्रतिकृति) मानना होगा। इन दों में से एक निर्णय करना ही होगा अन्यथा आगम सूत्रों की महत्वता कैसे रहेगी। विचार किजीयेगा। यह भी सोचियेगा कि इनको सिद्धायतन कहने का कारण क्या? "सिद्धायतन'' शब्द का अर्थ क्या समझा जाय ? रायपसेणी सूत्र (लिबंडी समुदाय द्वारा प्रकाशित) पेज नं. ४८ में स्पष्ट लिखा है कि सूर्याभदेव अपने देवताओं को आज्ञा देता है कि जमीन ऊपर सुगंधी पानी नो छंटकाव ओवी रीते करो, उड़ती धूल बेसीजाय पण किचड़ न थाय अने ओवी जमीन पर जलज अने थलज अवा पांच प्रकार ना पुष्पों नो वरसाद ओवी रीते वरसावो कि बधा फूलों जिताज पड़े। यदि ये फूल वैक्रिय होते तो जलज, थलज ये शब्द क्यों लिखे गये? क्या जलज और थलज पुष्प अचित या वैक्रिय हो सकते है ? इसी तरह समवायांग सूत्र में भी जल में उत्पन्न होने वाले कमल आदि एवं थल में उत्पन्न होने वाले चंपा आदि स्पष्ट उल्लेख होने पर भी अचित शब्द को जोड़कर विवाद उत्पन्न करना कैसान्याय? आगम सूत्रों के शब्दों को बदलना नहीं तो क्या है ? इसी के पेज नं. २८, २१में देवताओं द्वारा आज्ञापालन का उल्लेख है कि जेमकोई कुशल छंटनारों पाणी भरेला मोटा घड़ा द्वारा बगीचा ने छांटे अने शांत रज शीतल करें तेम देवोओ पाणी भरेला बादला द्वारा सुगंधी पाणी बरसावी छांटी धुलने बेसाडी दीधी- . - इसी तरह आगे भी लिखते है कि कुशल युवान फूल भरेली चंगेरिओ द्वारा राज सभा ने पुष्पों ने मधमधती करी दे तेवी रीते देवताओं फूल भरेला वादलनी रचनाकारी अने पुष्पों ने वरसाव्या विगैरे बिगेरे यहां पर ही आपका भ्रम मालूम होता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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