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________________ २७८ परिशिष्ठ-३ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा एवं गोठवी राखेला जिननां संकिथओं छः आपने बधाने अनी अर्चा वंदना पर्युपासना आपनु कर्तव्य छः यहां पर कोई भी देव सूर्याभदेव को जबरदस्ती नहीं करता, नहीं कोई डर बताते है, एवं इस बात पर भी विचार किजीये कि यदि ये प्रतिमायें (जिन प्रतिमाये) जिसे आप केवली जिन की नहीं मानते हुए अवधि जिन कामदेव आदि की मानते है तो प्रश्न यह होता है कि भगवती सूत्र आदि अंग सूत्र जिन की रचना गणधर भगवंत करते है और रायपसेणी जंबुद्वीप, पन्नति आदि उपांग सूत्र जिनकी रचना शायद गणधर नहीं तो दस पूर्वी आदि स्थविरकल्पी करते है। तो जहां-जहां भी देवलोक में एवं नंदीश्वर आदि द्वीपों में शाश्वत प्रतिमाओं जिनको जिन प्रतिमाएं कहीं गई है। जिनकी पूजा सौधर्म इद्र से लेकर अच्युत्त इन्द्र आदि जहां भी जो भी करते है तो इन जिन प्रतिमाओं की यदि केवली जिन की प्रतिमाएं नहीं है तो इन्द्र आदि देवताओं द्वारा विभिन्न प्रकार की पूजा का विस्तृत वर्णन, पूजा का पाठ आदि लिखने की आवश्यकता क्यों हुई। ऐसे वर्णनों के विस्तृत पूजा का वर्णन बताकर भव्य जीवों को अवधि जिन आप कामदेव आदि की प्रतिमाएं बताते है तो ऐसा करके क्या भव्य जीवों को कामदेव आदि असंयमी अविरति देवों के प्रति आकर्षण लगाकर उनके भक्त बनाने का उद्देश्य है ? क्या गणधर भगवंत ऐसा कर सकते है? क्या दसपूर्वी आदि स्थविर भगवंत कर सकते है ? इन महापुरुषों को असंयमी अविरति आदिदेवताओं की प्रतिमाओं के पूजन का वर्णन लिखने की आवश्यकता क्यों हुई?.क्या लोगों को केवली जिन छोड़कर अवधि जिन की तरफ लेकर जाने का प्रयास गणधर भगवंतों ने किया है ? अवधि जिन जिसे आप कामदेव कहें या अविरति असंयमी कहें इनकी पूजा भक्ति का वर्णन लिखकर आगमसूत्रों में जगह रोक कर एवं समय का भोग किस उद्देश्य से दिया? यदि ये वीतराग जिन की प्रतिमायें नहीं है तो नाहक यह प्रयास जो कि गणधर भगवंतो ने किया है व्यर्थ ही किया है ? यदि ऐसा ही होता तो साथ में यह भी लिख देते की ये प्रतिमायें पूजनीय नहीं । इन्द्र आदि देवता पूजा करने वाले अज्ञानी है मिथ्यात्वी है, परन्तु ऐसा नहीं करके इन्द्र आदिसम्यग दृष्टि देवता जो काम भोग में मस्त रहते है उनके लिए उनका सम्यगदर्शन टिका रहे इस हेतु से ये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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