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________________ २८० परिशिष्ठ-३ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा है, बादलनी रचना संबंधी, यहां पर बादल की रचना का उल्लेख है। फूलों का नहीं, कारण इसके पूर्व जलज और थलज शब्द आ गए है एवं इसके बाद फूलों की चंगेरिओ (टोकरियों) का उल्लेख है। अतः जिस तरह माली फूलों को टोकरीओं में भरे हुए फूलों द्वारा.... . इसी तरह फूलों को जो कि जलज थलज है बादलों में भरकर बरसाने का उल्लेख है अतः जरा शांति से विचार किजीयेगा और आगे पिछे के शब्दों को मिलाकर ही अर्थ निकालियेगा। मूल सूत्र में जलय थलय है जिसका जलज थलज होता है, प्राकृत शब्द कोष में देख लिजियेगा कि जलय, थलय का अर्थ क्या होता है। जल याने पानी य (य-ज) याने उत्पन्न होना, जलय याने जल में उत्पन्न, थलय थाने थल (जमीन) में उत्पन्न होना। इतना स्पष्ट उल्लेख है परंतु शब्द को बढ़ाना, बदलना मनचाहा अर्थ करना यह अपनी मरजी है। इस सत्र में तो इसके आगे कहां कहां से फूल लाने संबंधी भी उल्लेख है। समवायांग सूत्र की एक जेरोक्ष कोपी भेज रहा हूं। मूल प्राकृतभाषा का एवं हिन्दी भाषांतर की भी साथ में है जिसमें आप देख सकते है कि इन दानों में स्पष्ट उल्लेख है कि जल औरस्थल में विलनेवाले पांच वर्णो के फूल हिन्दी भाषांतरकर्ता श्री स्थानक वासी जैन श्रमण संध के युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी महाराज एवं कन्हैयालालजी कमल, श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्रि है इन्होने कहीं कहीं पर भी, भाषांतर में भी, जल और थल में खिलने वाले पांच वणों के फूल लिखा है परन्तु अचित या वैक्रिय शब्द का उल्लेख नहीं किया है शायद ये भी आपजैसे ज्ञानी नहीं हुए। प्रभु की पूजा का पुण्यफल सयं पमज्जणे पुण्णं, सहस्सं च विलेवणे । सय साहस्सिा माला, अरणंतं गीप्रवाईए । अर्थ-श्री जिनेश्वर भगवान की मनि-प्रतिमा का प्रमार्जन करते हुए सौ गुना पुण्य, विलेपन करते हुए हजार गुना पुण्य, पुष्प-फूल की माला चढ़ाते हुए लाख गना पुण्य और गीत गाते तथा वाजिन्त्र बजाते हए अनंतगुना पुण्य उपार्जन होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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