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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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(७) स्थानकवासी संत-सतियाँ आलू-प्याज- मूली- गाजर - लहसुन जैसे अनंतकाय क्यों खाते हैं ? क्या इसमें हिंसा नहीं है ?
(८) संघसम्मेलन क्यों करवाते हैं ? वहाँ भी भोजन बनाना, निवास देना आदि में आरंभ - समारंभ व हिंसा है । चद्दर महोत्सव करना भी तो हिंसा है ।
(९) स्थानक क्यों निर्माण करवाते हैं ? उसमें भी आरंभ-समारंभहिंसा है। खुदाई आदि में चींटी -मकोडा - सांप आदि की विराधना - होती है ।
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हम स्थानकमार्गी संतो को प्रश्न पूछते हैं कि
स्थानक बनवाना
धर्म है. या अधर्म ?
स्थानक बनवाना
स्थानक बनवाना
यदि आप कहेंगे कि ‘“स्थानक बनवाना पाप है हिंसा है, अधर्म है, आश्रव है, ऐसा कहेंगे कि - स्थानक निर्माण करने वाला, पापी - हिंसक - अधर्मी है और हिंसामय ऐसे पाप करनेवाला नरकादि दुर्गतियों में भटकता है, इसलिए स्थानक निर्माण करना पाप है और इसमें धन देनेवाला हिंसक है ।"
पाप है या पुण्य ?
आश्रव है या संवर ?
तो फिर धन देकर पाप व दुर्गति कौन मोल लेगा ?
यदि आप कहेंगे कि - स्थानक बनवाना हिंसा- पाप नहीं है, तो फिर - जिनमंदिर- जिनमूर्ति का ही विरोध क्यों ?
स्थानकवासी व तेरापंथी की परस्पर विचारणा
हिंसा-हिंसा का पुकारकर स्थानकवासी संप्रदाय ने जिनमंदिर- जिनमूर्ति का विरोध किया । और इससे आगे बढकर तेरहपंथी संप्रदाय ने जीवों की दया करना भी हिंसा है, जैसे कबूतर को जवारका चुगा नहीं डालना चाहिए क्योंकि इसमें एकेन्द्रिय वनस्पतिकाय सजीव जवार के जीवों की हिंसा है ।
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