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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ - ३ २७५ जीवन आदि पर विचार किजीयेगा। अब आगे इसी भगवती सूत्र में चमरेन्द्र की पूर्वभव की स्थिति आदि का विस्तृत वर्णन है। इसी के वर्णन में भगवान महावीर स्वामी गौतमस्वामी को अपनी छद्मस्थ अवस्था में चमरेन्द्र की घटना का वर्णन करते है। इस वर्णन में भी आप देख सकते है कि जब शक्रेन्द्र ने वज्र फेंका और चमरेन्द्र भागा तब शकेन्द्र विचार करते है कि असुरेन्द्र (चमरेन्द्र) इतना समर्थ नहीं है एवं नहीं चमरेन्द्र का इतना विषय है कि वह अरहंत भगवंत का, या अरहंत भगवंत के चैत्यों का या अणगारेवा का आश्रय लिये बिना स्वयं अपने आश्रय से इतना ऊंचा आ सके। जहां पर सौधर्म के शक्रेन्द्र को तीर्थंकर प्रभू का अनुयायी. होने से यहां ज्ञान है अर्थात समकितभी है। अतः यह ध्यान में आ जाता है यह आते भगवान महावीर का शरण लेकर आया है ऐसा मालूम होते ही शक्रेन्द्र भी भागता है और वज्र को पकड़ लेता है भगवान को वंदन करता है क्षमा मांगता है - अब एक प्रसंग पर विचार किजीयेगा कि : इस प्रकरण के प्रारम्भ में ही चमरेन्द्र द्वारा नाटक विधी दिखाना, इसी तरह इस भगवती सूत्र के शतक तीन उद्देशक एक में तामली तापसका ईशान इन्द्र के रुप में उत्पन्न होना और अपनी दिव्य शक्ति द्वारा भगवान के सामने 32 प्रकार के नाटक बताने का वर्णन है जिसमें वाद्ययंत्रों का प्रयोग आदि का वर्णन भी है। इसमें विशेष वर्णन के लिए रायपसेणि नाम के उपांग सूत्र का हवाला भी दिया है। अब आप देखिये कि चमरेन्द्र जो कि यह भी सम्यग दृष्टि हो गया है एवं ईशान इन्द्र जो कि यह भी सम्यग दृष्टि हो चुका है एवं सूर्याभदेव (रायपसेणी सूत्रानुसार) जो कि पहले ही समकिती था और अब भी है इन तीनों द्वारा भगवान महावीर के पास आकर गौतम स्वामी आदि श्रमणों के समक्ष नाटकविधि, वाजंत्र आदि द्वारा गीतगान करने के प्रसंगों का उल्लेख है । परन्तु यहां पर कहीं पर भी न तो भगवती सूत्र के दोनों प्रकरणों में और रायपसेणी सूत्र के सूर्याभ देव के प्रकरण में साहित्यकारों ने इस कार्य को हिंसा कहा है और न ही कहीं मिथ्यात्व कहा है, जबकि आप अपनी पुस्तक पेज नं. ३१ आदि में वायुकाय की हिंसा और आज्ञा भंग, छकाय की हिंसा, मिथ्यात्व बढ़ना आदि लिखते है । शायद इन आगम सूत्रों की रचना करने वाले गणधर भगवंत आदि पूर्वधरों के ज्ञान से भी आपको विशिष्ट ज्ञान हो गया है। यदि ऐसा हुआ है तो कृपया हमें भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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