SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ - ३ २७३ मन में विचार आता है कि किसी महात्मा की शरण लेकर जाना उचित है। इस विचार से अपने अवधि ज्ञान (विभंग ज्ञान) से देखना शुरु करता है, तो भगवान महावीर, काउस्सग ध्यान में दिखाई देते है। उस वक्त तक भी यह भगवान महावीर को साधारण महात्मा जैसा ही समझता है, न तो वह तीर्थकर प्रभु के बारे में कुछ जानता है उसके तीर्थंकर पणे के प्रति कोई श्रद्धा या भक्ति है। तीर्थंकर के प्रति 111 कोई जानकारी नहीं होने से उनके सिद्धान्त के बारे में भी प्रतिमा का क्या प्रभाव है, • तीर्थकर प्रभु की प्रतिमा का क्या प्रभाव है तीर्थकर प्रभु की प्रतिमायें कहा है आदि के बारे में सर्वथा अनजान है। अतः आपका अपने पत्र में यह लिखना कि देवलोक में अरहंत प्रभु की प्रतिमाये है तो वहां शरण ले सकता है यहां शरण लेने की क्या जरुरत है ? यह प्रश्न ही यहां अनावश्यक अप्रासंगिक हो जाता है। जब चमरेन्द्र हताश होकर मारके भय से भगवान के शरण में छिप जाता है और भगवान के शरण में आने के कारण शक्रेन्द्र चमरेन्द्र को क्षमा कर देता है एवं शक्रेन्द्र स्वयं भगवान को वंदन भक्ति करता है, यह सब देख कर चमरेन्द्र का भगवान के प्रति पूज्यभाव अनुराग उत्पन्न होता है। इसी के कारण भगवान महावीर को केवल ज्ञान होने के बाद जहां गणधर गौतम स्वामी आदि मुनि महाराज भी विराजमान है चमरेन्द्र अपने परिवार के ६४००० देवताओं के साथ भगवान को वंदन करने आता है। यही से भगवती सूत्र में इसका प्रारम्भ होता है - भगवती सूत्र के इस प्रकरण के प्रारम्भ में ही चमरेन्द्र का आना भगवान को वंदन करना अपनी देवऋद्धि से इशान इन्द्र की तरह भगवान महावीर और गणधर गौतम स्वामी आदि श्रमण भगवंतो की नाट्य विधी दिखाकर वापस लौट जाता है । चमरेन्द्र के इस आगमन से इसके दिव्य ऋद्धि आदि पर प्रश्नों का सिलसिला प्रारंभ होता है। इन्ही प्रश्नोत्तरो के प्रसंग में प्रश्न नम्बर १२ मे गौतम स्वामी के समाधान में भगवान महावीर ने चमरेन्द्र की उर्ध्व गति की शक्ति सौधर्म देवलोक तक जाने की बताई है। आग भी ये देवता (चमरेन्द्र) यहां तक गए है और आगे भी यहीं तक जाएंगे ऐसा समाधान है। परन्तु शायद गौतम स्वामी को संपूर्ण समाधान नहीं होने से प्रश्न नं. १५ में फिर भगवान से गौतम स्वामी पूछते है कि किसका आश्रय लेकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy