SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० परिशिष्ठ-२ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा wrir पशपांचने आरके लेहडे एकही फलानी सामरहमी ऐसा करते साइर) सूत्रके मूलपाठमें कहे? रिपपांचवे मारेके छेहडे एकही नागिलनामा श्रावकरहेगा' ऐ मा. करतोसोरशसूत्रके मूलपाठने कहा है? सय पांचवें सारे के छेडे एकही ससनीनामा शानिकारहेगी ऐसा कहते सो(३)सूत्रके मूलपाठ में कहा ?---- . .. रा AASH परवदे गुलाएकाधार'जे हमेशपदते विचारतेको सो (३२)मत्र कि फूलपाठने कहाने बधि हुयेक जीतको उदय में आते है सो उद्याधिकार(१२२) प्रकृतिको करलेले मोर सनके भूलपाउने कार--- पजीन की के साथ धाक साकारसें करे सो बंधाधिकार' (३२) र सत्रका मूलयाहरु कहिट - -- रमजान कका बंध करके कितनेक कालतक कायम पणे रस्के. सासत्ताधिकार प्रकृतिका ३२ स्लिकेपूलयामें कर? जिसके योग में जीव पाणा काजाताले सोजीत्रके दशप्राण सस्तके सूतया में कहा दरजीवके सीपहालेदकीय तागती(३०मूत्रकेमूलपाठने कहा है? नासहिये का घोडा रचनेकी रीति(३२)सत्रके मूलपाछमें कहा सर्वलोकारनामा करते हो मो(३२)सनके मूलपाहमें कहा है? A NS.. AVEL कहा . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy