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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा गई चैतन्यहीन (जड) मूति यदि शुभ ध्यान एवं शुभ भाव में सहायक नहीं मानी जाए तो फिर परमात्मा-तीर्थंकर का जड़ नाम भी शुभ अध्यवसाय में सहायक कैसे माना जा सकता है ?
स्थानकवासी परंपरा को जिनमंदिर और जिनमूर्ति से ही विरोध है । क्योंकि स्थानकवासी संत स्वयं के फोटो-तस्वीर बड़े चाव से छपवाते, बांटते हैं । अपनी किताबों में स्वयं की व दानदाता गृहस्थ की फोटो भी छपवाते
मूर्तिपूजा व जिनमंदिर के समर्थन में सब से बड़ा - प्रबल प्रत्यक्ष प्रमाण है- स्थानकवासी संत व लोग अपने गुरुओं मूर्ति समाधि मंदिर, पगल्या, चौतरा, छत्री आदि स्मारक का निर्माण करवाते है । जैसे - जैतारण (जि. पाली) में मरुधर केशरी श्री मिश्रीमलजी म.
का समाधिमंदिर है। __- लुधियाना में श्री रुपचंदजी म. का समाधिमंदिर है । .. - गोगुंदा- में श्री पुष्कर मुनि का टावर पुष्कर धाम व पगल्या
है। जिसका निर्माण आ. देवेन्द्रमुनिजी ने कराया है। - जगरांव में श्री फूलचंदजी म. की समाधि है। . - चिंचण (गुजरात) में श्री संतबालजी की समाधि है ।
अहमदनगर में आचार्यश्री आनंद ऋषिजी म. का चबूतरा
स्मारक बना हुआ है। ___ - राजगृह-वीरायतन में मुनि अमरचंदजी (कवि) का
समाधिमंदिर बना है। - मेरठ में भी बगीचे के बीच मे स्थानकवासी संत की मूर्ति
व छत्री है। __- औरंगाबाद में आ. श्री गणेशमलजी म. की ६ फुट बडी मूर्ति
और मंदिर बना है। - निमाज (तहसील-जैतारण) (जि. पाली) में आ. श्री
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