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- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा स्थानकवासी संत आदि कहते हैं कि - शास्त्र जड़ होते हुए भी उनसे ज्ञान प्राप्त होता है, किन्तु जिनमूर्ति से नहीं । पर उनका ऐसा कहना ठीक नहीं है। अनपढ-गँवार के लिए तो शास्त्र से भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। उसे तो शास्त्र के अक्षर काली लकीरें ही दिखेंगी। उसके लिए काला, अक्षर भैंस बराबर ही सिद्ध होंगे। ठीक उसी प्रकार अज्ञानी, द्वेषी, मिथ्यात्वी व्यक्ति को जिनमूर्ति जड़-पत्थर ही नज़र आएगी, पर ज्ञानी श्रद्धावान, सम्यग्दृष्टि के लिए यह जिन भगवान-अरिहंत ही प्रतीत होंगे कि- यह उपास्य, वंदनीय, पूजनीय है।
एकलव्य को गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति में साक्षात् गुरु दिखाई दिये थे, जिससे उसने बाणविद्या का ज्ञान प्राप्त किया था ।
याद रखें कि - जिनमूर्ति कीमती पत्थर, हीरा, माणिक से बनी है या मूल्यवान् सोना-चांदी जैसी धातु से बनी है इसलिए उपास्य नहीं है, किन्तु यह जिनमूर्ति मूर्तिमान तीर्थंकर का प्रतीक है, इसलिए पूजनीयउपासनीय है। जैसे भक्त बेटे के लिए अपने पिता की फोटो तस्वीर ।
क्या पत्थर की गाय कभी दूध देती है ? स्थानकवासी संतों द्वारा बारबार व्याख्यान में पूछा जाता है और किताबो में लिखा जाता है कि
क्या पत्थर की गाय कभी दूध देती है ?
उसका उत्तर यह है कि - वैसे तो गाय के नाम का जाप करने से भी दूध नहीं मिलता है। तो क्या वे अरिहंत - महावीर का (जड) नाम लेना भी बंद कर देंगे ?
जिस प्रकार अरिहंत का नाम-शुभ भावों मे लाभदायी है, उसी प्रकार अरिहंत की स्थापना-आकृति भी शुभभावों में लाभदायी है।
अरिहंत - अरिहंत ऐसा नाम भी जड़ है, फिर भी नाम लेने से शुभभावों की उत्पत्ति हम मानते हैं, इसी प्रकार अरिहंत की मूर्ति की भी उपासना करने से शुभभावों की उत्पत्ति होती है। परमात्मा तीर्थंकर की मानी
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