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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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श्री आवश्यक मूळ सूत्र पाठमां
'अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं ।"
एम कही, साधु अने श्रावक सर्व लोकमां रहेली श्री अरिहंतनी प्रतिमानो काउस्सग्ग बोधि बीजना लाभ माटे करे
एम कह्युं छे.
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(२१)
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'थयथुइ मंगलं ।'
स्थापनानी स्तुति करवाथी जीव सुलभ बोधि थाय छे, उतराध्ययन सूत्रमां लख्युं छे.
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(२२)
श्री अनुयोग द्वार तथा श्री ठांणाग सूत्रमां चारे निक्षेपा तथा दस प्रकारना सत्योनुं वर्णन करेलुं छे, तेमां स्थापना निक्षेप तथा स्थापना - सत्य पण आवी जाय छे. तेनाथी पण स्थापना एटले मूर्ति मानवानुं सिद्ध थई जाय छे.
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एम श्री
कदाग्रह रहित बुद्धिमान पुरुषोने मात्र ईशारो ज बस छे सूत्रना सेंकडो पाठोमांथी मात्र आटलाज पाठो आपवा अहीं उचित जणाय छे. विस्तार भयथी वधु पाठो नथी आप्या, छतां बीजा पण केटलांक प्रमाणो प्रसंगोपात विचारी शुं ते उपरथी विवेकी वाचक वर्ग यथार्थ निर्णय करी शकशे. जैनोमां मूर्ति पूजा परंपराथी न होत, तो ते मूळ सूत्रोमां आवी क्यांथी ?
दुनियामां दरेक नामवाळी वस्तु पोतपोताना अमुक गुणो करीने संयुक्त होय छे, तेम "मूर्ति" नाम धरावनारी वस्तु पण कोई रीते निरर्थक नथी 'मूर्ति' शब्द पण तेमां रहेल वस्तुनो यथार्थ बोध करावे छे.
'पत्थर' शब्द बोलवानी साथे तेमां रहेला काठिन्यनो बोध थाय छे. तेम 'मूर्ति' शब्द मूर्तिमंत परमात्म-स्वरुपनो बोध करावे छे तेमज मूर्तिनो जे आकार होय छे, ते पण मूर्तिमंत परमात्म सदृश होय छे. एटले श्री जिनेश्वरदेवना बाकीना त्रण निक्षेपा जेटलो ज उपकारक आ चोथो निक्षेपो
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