________________
२३६
- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा आराधन, तेमनी मूर्ति सिवाय बनी शके ज नहि.
(१८) श्री व्यवहार सूत्रमा का छे के - "सिद्धवेयावच्चेणं महानिज्जरा महापज्जवसाणं चेयत्ति ।"
अर्थ :- श्री सिद्ध परमात्मानी वैयावच्च करवाथी महा निर्जरा थाय याने मोक्ष मळे.
तर्क - श्री सिद्ध परमात्मानी वैयावच्च तो नाम स्मरणथी थई शके छे, तो पछी मूर्ति शुं प्रयोजन ?
समाधान - नाम-स्मरण करवू तेने तो गुणगान, कीर्तन, भजन, स्वाध्याय वगेरे कहे छे, पण वैयावच्च नहि. जो वैयावच्चनो अर्थ एवो करशो तो श्री प्रश्न व्याकरणमां बाळकनी, वृद्धनी, रोगीनी अने कुलगणादिनी दश प्रकारे वैयावच्च साधुए करवानी कही छे, तो शुं नाम याद करवाथी ज वैयावच्च थई जशे ? के आहार, पाणी, औषधि, अंगमर्दन, शय्या, संथारा वगेरे करवाथी थशे ?
नामादि करवाथी वैयावच्च थई नहि गणाय, पण पूर्वोक्त प्रकारे सेवाचाकरी करवाथी ज गणाशे.
श्री सिद्ध परमात्मानी वैयावच्च तो तेमनुं मंदिर बंधावी. तेमां तेमनी मूर्ति स्थापनाकरी, वस्त्राभूषण, गंध, धूप, पुष्प, दीपे करी अष्ट प्रकारी, सत्तर प्रकारी आदि पूजा करवी, तेने ज कही शकाय.
(१९) श्री प्रश्न व्याकरणमा फरमान छे के निर्जरना अर्थी साधु 'चेइयढे अर्थात् जिनप्रतिमानी, हीलना, तेना अवर्णवाद तथा तेनी बीजी पण आशातनाओनुं उपदेश द्वारा निवारण करे छे.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org