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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा भगवंताणं जावसंपत्ताणं वंदइ णमइ जाव जिणघराओ पडिणिक्खमइ" भावार्थ : त्यारपछी ते द्रौपदी नामनी राजकन्या, ज्यां स्नान मज्जन करवानुं घर छे. त्यां आवे आवीने मज्जन घरमा प्रवेश करे. प्रवेश करीने प्रथम नाही पछी बलीकर्म अर्थात् घर दहेरासरनी पूजा करीने मननी शुद्धि माटे जेणीए कौतुकमंगल कर्या छे एवी राजवर कन्या द्रौपदी शुद्ध, दोषरहित, मज्जन घरमांथी नीकळे. नीकळीने ज्यां जिनमंदिर छे. त्यां आवे. आवीने जिन घरमा प्रवेश करे. प्रवेश करीने मोरपींछी वडे प्रमार्जन करे पछी सर्व विधि जेम सूर्याभ देवे प्रतिमापूजी ते प्रमाणे सत्तर भेदे पूजा करे. धूप उवेखे. धूप करीने डाबो ढींचण ऊंचो राखे. जमणो ढींचण जमीन पर स्थापन करे. त्रणवार मस्तक पृथ्वी पर नमावे पछी थोडे नीचे नमीने हाथ जोडी दश नख भेगा करी, मस्तक पर अंजलि करी एम कहे 'नमस्कार थाओ अरिहंत भगवान प्रत्ये यावत सिद्धिगतिने पाम्या छे. त्यां सुधी अर्थात् संपुर्ण शकस्तव बोले. वंदन - नमस्कार कर्या पछी दहेरासरमांथी बहार नीकळे. २२९ (प्रथममां द्रौपदीए घर दहेरासरनी पुजा करी छे. त्यार पछी उमदा वस्त्रो पहेरी दहेरासर गई छे. जेम हालमां पण घणा श्रावको करे छे.) श्री उपासक दशांग सुत्रमां आनंद श्रावके जिनप्रतिमा वांद्यानो पाठ छे, ते नीचे प्रमाणे नो खलु में भंते ! कज्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा, अन्न उत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थिय परिग्गहियाणि अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तएं वा" भावार्थ : हे भगवन् ! मारे आजथी लईने अन्यतीर्थी (चरकादि), अन्यतीर्थीना देव (हरिहरादि) तथा अन्यतीर्थीए ग्रहण करेलां अरिहंतनां चैत्य जिन - प्रतिमा तेमने वंदन नमस्कार करवा न कल्पे. अन्य देव तथा गुरुनो निषेध थतां जैन धर्मना देव- गुरु स्वयमेव वंदनीय ठरे छे, छतां कोई कुतर्क करे तो तेने पूछवानुं के 'आनंद श्रावके अन्य देवने चारे निक्षेपे वंदना त्यागी के मात्र भाव निक्षेपे ?' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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