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________________ ૨૨૮ - जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा अरिहंते वा अरिहंतचेझ्याणि वां भाविअप्पणो अणगारस्स । भावार्थ : (१) श्री अरिहंत देव (२) श्री अरिहंतदेवनां चैत्य (प्रतिमा) अने (३) भावित छे. आत्मा जेनो एवा साधु- - ए त्रण शरणां जाणवा. (७) श्री आचारांगना प्रथम उपांग श्री उववाई सूत्रमा अंबड श्रावके तथा तेमना सातसो शिष्योए अन्य देव-गुरुने वंदननो निषेध करी श्री जिनप्रतिमा तथा शुद्ध गुरुने नमस्कार करवानो नियम कर्यो छे. ते सूत्रपाठ नीचे प्रमाणे छे. अंबडस्स परिवायगस्स नो कप्पइ अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थियदेवयाई वा अन्नउत्थिपरिग्गहिआई अरिहंत चेइयाइं वा वंदित्तए वा नमंसित्तण वा नन्नत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइआई वा ।" भावार्थ : अंबड संन्यासीने न कल्पे. अन्य तीर्थी प्रत्ये अथवा अन्य तीर्थोना देव प्रत्ये अथवा अन्य तीर्थीए ग्रहण कर्या होय एवा अरिहंतना चैत्य (प्रतिमा) प्रत्ये (श्री जिनप्रतिमाने अन्य दर्शनीए पोताना देव तरीके मानी होय, ते अत्रे समजवी) वंदना, स्तवना, नमस्कार करवा न कल्पे. परंतु अरिहंत अथवा अरिहंतनी प्रतिमाने नमस्कार करंवा कल्पे. (८) छठ्ठा अंग श्री ज्ञातासूत्रमा द्रौपदी श्राविकाए सत्तर भेदे द्रव्य तथा भावपूजामां "नमोत्थुणं अरिहंताण" कह्यानो पाठ आ रीते छे : ___ तएणं सा दोवई रायवरकन्ना जेणेवमज्जणघरे तेणेव उवागच्छई मज्जणघरं अणुप्पविसइ ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई वत्थाइ परिहिया मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, जेणेय जिणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता जिणघरं अणुप्पविसइ अणुप्पविसइत्ता आलोए जिणपडिमाण पणामं करेइ लोमहत्थयं परामुसइ एवं जहा सूरियाभो जिणपडिमाओ अच्चेइ तहेवं भाणिअव्व जाव धूवं डहइ धूवं डहइत्ता वामं जाणु अंचेइ, अंचेइत्ता दाहिणं जाणु घरतिणलंसि निवेसेइ तिखुत्तो मुद्धाणं घरतिलंसि ईसीं पच्चुण्ण मइ पच्चुण्णइत्ता करयल जाव कट्ट एवं वयासी नमोत्थुणं अरिहंताणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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