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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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जो कहेशो के, अन्य देवना चार निक्षेपोनो निषेध कर्यो छे, त्यारे तो स्वत: सिद्ध थयुं के अरिहंतदेवना चारे निक्षेपा तेने वंदनीय छे. जो अन्य देवना भाव निक्षेपानो ज निषेध कर्यानुं कहेशो, तो ते देवना बाकीना त्रणे निक्षेपा आनंदने वंदनीय रहेशे अने ते प्रमाणे करवाथी व्रतधारी श्रावकने दूषण लागे
ज.
अन्य देव हरिहरादि आनंदना वखतमां साक्षात् विद्यमान हता नहि तेमनी मूर्तिओ हती. तो बतावो के तेणे कोनो निषेध कर्यो ? जो 'अन्यदेवनी मूर्तिनो कहेशो तो अरिहंतनी मूर्ति स्वत: सिद्ध थई.
आ पाठमां “चैत्य'' शब्दनो अर्थ "साधु करी, केटलाक लोको उल्टो अर्थ करे छे. तेमने पूछवानुं के, साधुने अन्य तीर्थ ग्रहण शी रीते करे छे ?' जो जैनसाधुने अन्य दर्शनीए ग्रहण कर्या होय अर्थात् गुरु करी मान्या होय अने तेमणे वेष पण बदली नाख्यो होय तो पछी ते साधु अन्य दर्शनी थई गया. पछी ते कोई प्रकारे जैन साधु न गणाम.
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सिद्धार्थ राजाए द्रव्यपूजा कर्यानुं वर्णन श्री कल्पसुत्रमां आ प्रमाणे छे
"तए णं सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीए, सइए अ, साहस्सिए अ, सयसाहस्सिए अ, जाए अ, x x x x लंभे पडिच्छमाणे अ, पडिच्छावेमाणे अ एवं वा विहरइ || "
भावार्थ : त्यार बाद सिद्धार्थ राजा 'दस दिवस सुधी महोत्सव रुप कुल मर्यादा प्रवर्ते छते जेमां सो द्रव्य लागे, हजार द्रव्य लागे अने लाख द्रव्य लागे तेवा याग- अरिहंत भगवंतनी प्रतिमानी पूजाने करतां, बीजा पासे करावतां तथा वधामणाने पोते ग्रहण करतां अने सेवको पासे ग्रहण करावतां विहरे छे.
शंका- सिद्धार्थ राजाए यज्ञ कर्यो हतो, पण पूजा क्यां करी हती ? समाधान- सिद्धार्थ राजा श्री पार्श्वनाथ स्वामीना बार व्रतधारी श्रावक
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