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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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"अप्रमतमुनिओनी नदी उतरवा वगेरेनी क्रियामां थती हिंसा अहिंसानो अनुबंध करावे छे. तेवी हिंसाथी हिंसानो अनुबंधनो विच्छेद थई जतो होवाथी ( अप्रतिबद्धविहार वगेरे) गुणोनी वृद्धि थाय छे."
जो आ प्रमाणे हिंसा-अहिंसाना प्रकारो न समजे अने केवळ बाह्य अहिंसाज जोवामां आवे तो मुनि पण अहिंसक न बनी शके. कारण सूक्ष्म हिंसा तो मुनिने पण लागे छे. जीव वीतराग बने छे (= सर्वज्ञ बने छे) त्यार पछी पण मोक्षमां न जाय त्यां सुधी सूक्ष्म हिंसा चालु होय. जो बाह्यथी कोई पण जातनी हिंसा न थाय तो अहिंसक भाव आवे एम मानवामां आवे तो एकेन्द्रिय जीवो बाह्यथी कोई हिंसा करता नथी. तेथी ते जीवो अहिंसक बनवा जोईए. पण तेम नथी.
माटे हिंसा-अहिंसामां भावनी ( = ध्येयनी अने परिणामनी) प्रधानता छे. जिनपूजामा सामान्य हिंसा थवा छतां तेनाथी परिणामे लाभ थाय छे. आ विषयने शास्त्रमां कूवाना दृष्टांथी समजाववामां आव्यो छे. अहीं नुकशान करतां लाभ वधारे थाय छे. कूवो खोदवामां शरीर कादवथी खरडाय छे. कपडां मेलां थाय छे, श्रम-क्षुधा-तृषा वगेरेनुं दु:ख वेठवुं पडे छे. पण कूवो खोदाया पछी तेमांथी पाणी नीकळतां तृषा आदि दूर थवाथी कूवो खोदवानी प्रवृत्ति लाभकारी बने छे. ते प्रमाणे जिनपूजा माटे स्नानादि करवामां प्रारंभमां अल्प हिंसा रुप सामान्य दोष लागवा छता पछी पूजाथी थयेला शुभभावो द्वारा विशिष्ट अशुभ कर्मोनी निर्जरा अने पुण्यानुबंधी पुण्यनो बंध थतो होवाथी परिणामे लाभ थवाथी स्नानादिनी प्रवृत्ति लाभकारी छे. व्यवहारमां पण जे प्रवृत्तिमां थोडुं नुकशान होवा छतां अधिक लाभ होय तो ते प्रवृत्ति करवा जेवी मनाय छे. लोको करे पण छे. लोको ज्यारे वेपार करे छे त्यारे पहेलां व्यय करवो पडे छे. छतां लोको पैसा गुमावी दीधा एम मानता नथी. कारण के जेटलो व्यय थाय तेनाथी अधिक लाभ भविष्यमां थवानो छे. तेम जिनपूजाथी पण परिणामे सर्वथा हिंसाथी निवृत्ति थाय छे.
प.पू. आ. राजशेखर सूरिजी म.सा.
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