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________________ २२२ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा न होय. कारण के हिंसानो हेतु (=कारण) प्रमाद रहेलो छे. आ जीवमां अप्रमाद नथी. प्रमाद छे. (७) हवे जो ते जीव उपयोगपूर्वक न चाले अने जीव मरी जाय तो तेने स्वरुप अने हेतु ए बे अहिंसा न होय, पण अनुबंध अहिंसा होय. कारण के प्रमाद थई जवा छतां अने जीव मरी जवा छतां अंतरमां परिणाम तो अहिंसाना ज छे. प्रश्न : उपयोगपूर्वक चाले छतां जीवो मरी जाय ए केवी रीते बने ? उत्तर : उडता पतंगिया वगेरे जीवो सहसा पगनीचे आवी जाय त्यारे अथवा साधु नदी उतरता होय वगेरे प्रसंगे आवु बने. अहीं अनुबंध अहिंसा होय. जे जीव जिनवचन प्रत्ये श्रद्धाळु बनीने मोक्षना आशयथी यतना पूर्वक जिनपूजा करे तेने मात्र स्वरुप हिंसा लागे, हेतु के अनुबंध हिंसा न लागे. हवे जो यतना विना जिनपूजा करे तो हेतु अने स्वरुप ए बने हिंसा लागे. पण अनुबंध हिंसा न ज लागे. कारण के हिंसाना भाव नथी. भाव तो जिनपूजाना ज छे. पुष्पादिथी जिनपूजा करती वखते जीवोने सामान्य किलामणा वगेरे हिंसा थवा छतां पूजकने पुष्पादिकना जीवो प्रत्ये हिंसक भाव न होय, किंतु दयाभाव होय. यतनाथी जिनपूजा करनारने हिंसानो अनुबंध थतो नथी, अहिंसानो अनुबंध थाय छे. आ विषे अध्यात्सारमां कह्युं छे के सतामस्यास्कस्याश्चिद् यतना भक्तिशालिनाम् । अनुबन्धो हाहिंसाया जिनपूजादिकर्मणि ॥ "यतनापूर्वक कराती जिनभक्तिथी शोभता सत्पुरुषोना जिनपूजादि कार्यो मां थती हिंसाथी अहिंसानो अनुबंध थाय छे - हिंसाथी पण अहिंसानुं फळ मळे छे. " साधूनामप्रमत्ताना सा चाहिँसानुबन्धिनी । हिसानुबन्धविच्छेदाद् गुणोत्कर्षो यतस्ततः ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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