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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
२२१ उत्तर : आ विषयने बहु सूक्ष्मदृष्टिथी समजवानी जरुर छे. माराथी जीवो न मरे एवा उपयोग मात्रथी अहिंसाना परिणाम छे ए नक्की न थाय. अहिंसाना परिणाम छे के नहि ते जाणवा अहिंसा- पालन शा माटे करे छे ते जाणवू जोईए. जेना अंतरमां अहिंसाना पालनमां मोक्षनो के स्वकर्तव्यपालननो आशय होय तेना ज अंतरमां अहिंसाना परिणाम होय. जेना अंतरमा अहिंसाना पालनमां उक्त आशय न होय, किन्तु अन्य कोई भौतिक आशय होय, तो जीव उपयोग पूर्वक चालतो होय छतां तेनामां अहिंसाना परिणाम न होय. बगलो पाणीमां अने पारधि जमीन उपर जराय अवाज न थाय तेवा उपयोग पूर्वक चाले छे. पण तेना अंतरमा अहिंसाना परिणाम नथी. अभव्य जीवो चारित्रनुं पालन सुंदर करे छे. माराथी कोई जीव मरी न जाय तेनी बहु काळजी राखे छे. दरेक प्रवृत्ति उपयोग पूर्वक करे छे. छतां तेमां अहिंसाना परिणाम नथी. कारणके तेनुं ध्येय खोटुं छे. चारित्रना पालनथी (=अहिंसाना पालनथी) तेने संसारनां सुखो जोईए छे. संसारसुख माटे जे जीवो अहिंसा, पालन करे तेने संसारनां सुखो मळे अने परिणामे ते जीवो वधारे पाप करनारा बने एथी परिणामे हिसा वधे. __आथी संसारसुखनी प्राप्ति वगेरे दुन्यवी आशयथी अहिंसा- पालन करनार जीवो उपयोग पूर्वक प्रवृत्ति करे अने कोई जीव न मरे एथी तेमने हेतु अहिंसा अने स्वरुप अहिंसा होय, पण अनुबंध अहिंसा न होय. आवी हेतु अहिंसाथी हिंसा वधवा द्वारा दुःख वधे.
(४) जेना अंतरमा अहिंसाना परिणाम थया छे ते मुनि वगेरे जीवो उपयोग पूर्वक चाले अने जीवो न मरे तो तेमने त्रणे प्रकारनी अहिंसा होय छे. त्रणमांथी एक पण प्रकारनी हिंसा न होय. (५) हवे जो (जेना अंतरमां अहिंसाना परिणाम छे) ते होय. पण स्वरुप अहिंसा न होय. अंतरमा अहिंसाना परिणाम छे माटे अनुबंध अहिंसा छे. उपयोग पूर्वक चाले छे माटे हेतु अहिंसा छे. जीव मरी जवाथी स्वरुपथी = बाह्यथी हिंसा थई होवाथी स्वरुप अहिंसा नथी. (६) हवे जो ते जीव प्रमादना कारण उपयोग पूर्वक न चाले. छता जीव न मरे तो अनुबंध अने स्वरुप ए बे अहिंसा होय. पण हेतु अहिंसा
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