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. जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा स्वरुप अहिंसा : जीवो न मरे के जीवोने दुःख न थाय ते स्वरुप अहिंसा.
स्वरुप हिंसा :- जीवो मरे के जीवोने दुःख थाय ते स्वरुप हिंसा.
अनुबंध अहिंसा :- अनुबंध एटले परिणाम. जे प्रवृत्तिथी परिणामे अहिंसा थाय ते अनुबंध अहिंसा.
अनुबंध हिंसा :- जे प्रवृत्तिथी परिणामे हिंसा होय, जेनुं फळ हिंसा होय, ते अनुबंध हिंसा, हेतु हिंसा अने हेतु अहिंसामां माराथी जीवहिंसा न थई जाय तेनी काळजी (=तेनो उपयोग) छे के नहि तेनी मुख्यता छे. स्वरुप हिंसा अने स्वरुप अहिंसामां जीवो मर्या छे के नहि तेनी मुख्यता छे. अनुबंध हिंसा अने अनुबंध अहिंसामां ध्येयनी मुख्यता छे. एटले अहिंसानुं पालन करवामां ध्येय शुं छे अने थई रहेली हिंसामां ध्येय शुं छे तेनी मुख्यता छे.
आ त्रण प्रकारनी हिंसामां हेतु हिंसा अने अनुबंध हिंसा पारमार्थिक हिंसा छे तेमां पण अनुबंधहिंसा मुख्य हिंसा छे. हवे त्रण प्रकारनी हिंसा अने अहिंसामां कोने केटली अने केवी रीते हिंसा अने अहिंसा होय ते विचारीए.
(१) जेना अंतरमा अहिंसाना भाव नथी, तेवो जीव उपयोग विना चाले अने जीव मरी जाय तो तेने त्रणे प्रकारनी हिंसा लागे. अंतरमा अहिंसाना भाव न होवाथी अनुबंध हिंसा लागे. उपयोग विना चालवाथी हेतु हिंसा लागे. जीव मर्यो होवाथी स्वरुपहिंसा पण लागे. (२) जो अहींजीव न मरे तो स्वरुपहिंसा सिवाय बे प्रकारनी हिंसा लागे. संसारमा रहेला लगभग बधा ज जीवोने क्यारेक त्रणे प्रकारनी तो क्यारेक बे प्रकारनी हिंसा लाग्या करे छे. (३) हवे जो ते जीव (जेना अंतरमा अहिंसाना भाव नथी ते) उपयोग पूर्वक चाले अने जीवो न मरे तो तेने एक ज अनुबंध हिंसा लागे.
प्रश्न : अंतरमा अहिंसाना भाव न होय छतां माराथी जीवो न मरे तेवा उपयोग पूर्वक चाले ए शी रीते बने ? माराथी जीवो न मरे तेवो उपयोग ज सूचवे छे के अंतरमा अहिंसाना भाव छे.
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