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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
माध्यमथी तेमना गुणी आत्मानी पूजा थाय छे. एटले मूर्तिपूजा ए खुद
भगवाननी पूजा
छे.
प्रश्न : मूर्ति जड छे. आथी जेम माटीनी गायने दोहवाथी दूध न मळे तेम जडमूर्तिनी पूजाथी चेतनने कशो लाभ न थाय.
उत्तर : जेम पथ्थरनी गाय दूध न आपे तेम गायनुं नाम पण दूध न आपे. आथी भगवाननुं नाम पण न लेवुं जोईए. मूर्तिना विरोधीओ लोगस्स वगेरे सूत्रमां भगवानना नामनुं कीर्तन करे छे. जेओ मूर्तिसमक्ष क्रिया करता नथी, पण ईशान खूणा तरफ क्रिया करे छे तेमणे आ विचारवानी जरुर छे. ईशानकूणा तरफ क्रिया करता भगवान देखाता नथी, किंतु ईशान खूणो देखाय छे. आम छतां मनमां एम रहे छे के श्रीसीमंधरस्वामी ईशान खूणा तरफ छे माटे हुं श्री सीमंधरस्वामीनी समक्ष क्रिया करूं छं. तेम मूर्ति समक्ष पण क्रिया करतां हुं भगवाननी समक्ष क्रिया करुं छं एम मनमां रहे छे. तथा मूर्ति प्रत्यक्ष देखाती होवाथी मूर्तिनी समक्ष क्रिया करवामां वधारे सारो भाव आवे छे. ईशानखूणा तरफ क्रिया करवामां भगवान घणा दूर छे एम मनमां थाय छे. ज्यारे मूर्तिनी समक्ष क्रिया करवामां भगवान सामे ज बिराजमान छे एम ज थाय छे. आधी मूर्तिनी समक्ष क्रिया करवामां वधारे लाभ थाय छे.
मूर्तिपूजामां हिंसानुं पाप अल्प अने धर्म अधिक
आजे केटलाको हिँसाना नामे मूर्तिपूजानो विरोध करे छे ए योग्य नथी. जो सूक्ष्मदृष्टिथी हिंसा अने अहिंसाने समजवामां आवे तो स्पष्ट ख्यालमां आवी जाय के मूर्तिपूजामां वास्तविक हिंसा नथी. अहिंसाना अने हिंसाना हेतु, स्वरुप अने अनुबंध एम त्रण प्रकार छे.
हिं :- जयणा राखवी, एटले के जीवो न मरे तेनी काळजी राखवी (=उपयोग राखवो), ए हेतु अहिंसा छे.
हेतु हिंसा :- जयणा न राखवी, एटले के जीवो मरे तेनी काळजी न राखवी (=उपयोग न राखवो ) ए हेतु हिंसा छे. हेतु एटले कारण, हिंसानुं मुख्य कारण अजयणा छे. जीवो न मरे तेनी काळजी न राखवी ए अजयणा छे.
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