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. जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा चैत्य शब्दनो अर्थ मूर्तिपूजानो निषेध करनाराओ पौषधशाळा वगेरे बनावे छे, बीजा गाम आदिमा रहेला मुनिओने वंदन करवा वाहननो उपयोग करे छे, सार्मिक भक्ति माटे रसोडुं वगेरे करे छे. आमां पण हिंसा तो थाय छे. मूर्तिपूजाना निषेधको शास्त्रमा जिनमूर्ति के जिनमंदिरना अर्थमां आवता चैत्य शब्दनो ज्ञान के साधु अर्थ करे छे ते बरोबर नथी. चैत्यशब्दनो अर्थ जिनमंदिर के जिनमूर्ति थाय छे. अथवा भगवान जे (अशोक) वृक्ष नीचे बेसीने देशना आपें छे ते वृक्षने चैत्य कहेवामां आवे छे. आथीज आचार्य श्री हेमचंद्रसूरि महाराजे स्वरचित शब्दकोषमां कर्तुं छे के - "चैत्यो जिनौकस्तबिम्ब, चैत्यो जिनसभातरुः" चैत्य शब्द जिनमंदिर के जिनमूर्ति अर्थमां छे. जे वृक्षनी नीचे बेशीने भगवान धर्मदेशना आपे छे. ते (अशोक) वृक्षने पण चैत्य कहेवामां आवे छे.
जिनपूजाथी थता लामो (१) जेटलो समय जिनपूजा थाय तेटलो समय पापोथी बची जवाय छे.
आत्मामां सुंदर भावो जागे छे. एथी अशुभ कर्मोनी निर्जरा थवा साथे पुण्यानुबंधी पुण्यनो बंध थाय छे. अशुभ कर्मोनी निर्जराथी सम्यग्दर्शनादि गुणोनी प्राप्ति थाय छे अने पुण्यानुबंधी पुण्यना उदयथी विशिष्ट भौतिक
सुखोनी प्राप्ति थाय छे. (३) भविष्यमां चारित्रनी प्राप्तिथी सर्वथा संसारना आरंभोथी निवृत्ति थाय छे. (४) बीजा जीवोने धर्म पमाडी शकाय छे.
सौ कोई जिनमूर्तिना आलंबनथी सम्यग्दर्शनादि गुणो मेळवीने मुक्तिपदने शीघ्र पामो ए ज एक मंगल कामना.
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