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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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बिरबलजी ! तमे पथ्थर पूजक छो ने ? बिरबल: हा, नामवर ! हुं पथ्थरपूजक छं. अकबर : शुं पथ्थर पूजवाथी खुदा प्रसन्न थाय ? बिरबल : हा. अकबर : पथ्थरमां क्यां खुदा होय छे, जेथी ते प्रसन्न थाय. बिरबल : नामवर ! चर्चाथी आ वात समजाववामां घणो समय जशे छतां कदाच आपना मगजमां आ
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वात न पण बेसे. आथी अनुभवथी आ वात आपने पछी समजावीश. अकबर: सारुं, अनुभवथी समजावजे. आ प्रमाणे नक्की थया पछी बिरबले राज्यना महान कलाकार पासे अकबरना राज दरबारे जवाना रस्तामां एक ओटला उपर आ चित्रनी सामे धूप-दीप आदि तथा बादशाहनी स्तुति करजे. आ स्त्रीए दररोज ते प्रमाणे करवा मांड्य एक वखत राजानी दृष्टि तेना उपर पडी. अकबरे तेने पुछ्यु : अरे बाई ! तुं मारी पूजा अने स्तुति केम करे छे ? खुदानी करीश तो तुं मोतथी मुक्त बनीश. बाईए कह्युं : नामवर ! अन्य राजाओ करतां आप घणां सारां छो आथी आपने मळीने आपनी समक्ष आपनी स्तुति पूजा करवानुं मन थाय छे. पण हुं सामान्य नारी आपने शी रीते मळी शकुं ? आथी मारा भावने व्यक्त करवा आपनुं चित्र बनावीने तेनी भक्तिस्तुति करूं छं. अकबर : हुं तारा उपर खुश छं. आवती काले तने ईनाम आपीश. बीजा दिवसे समय थता सभा मळी. अकबर बिरबलने कह्युं : आजे एक युवतीने ईनाम आपवानुं छे. बिरबल केम ? अकबर : ए रोज मारी भक्ति - स्तुति करे छे. बिरबल : ए बाई आपनी भक्ति - स्तुति नथी करती किंतु कागळनी करे छे. शुं आप अने कागळ एक ज छो ? आ सांभळी अकबर विचारमां पडी गयो. जेम लोढुं गरम होय त्यारे टीपवाथी बरोबर घाट घडी शकाय, तेम पोप्तानी वातने ठसाववानो मोको जोईने बीरबले कह्युं : नामवर ! आप ते दिवसे राजदरबारमा पथ्थरपूजानो निषेध करी रह्या हता. ते ज पथ्थरपूजानो अत्यारे स्वीकार नथी करी रह्या ? हिंदुओना धर्मनी ए ज खूबी छे. सर्व धर्मक्रियाओमां मनना भाव ज मुख्य भाग भजवे छे. पथ्थर आदिनी मूर्तिमां भक्तना भावथी ज भगवान आवी जाय छे. मूर्ति द्वारा भगवाननी ज पूजा करे छे. जो पथ्थरनी पूजा कराती होय तो हे भगवान ! मारुं कल्याण करो वगेरे न बोले, किन्तु हे पथ्थरदेव ! मारुं कल्याण करो वगेरे बोले. आप जेम आपना चित्रनी पूजाथी प्रसन्न थया तेम मूर्तिपूजाथी भगवान (भगवानना
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