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________________ २०७ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १ "नामजिणा जिणनामा ठवणजिणा पुण जिणिदपडिमाओ दव्वजिणा जिणजीवा भावजिणा समवसरणत्था ॥" (१६) इस श्लोक द्वारा आचार्य श्री ने द्रव्य विमलनाथ का अर्थ गृहस्थ अवस्था में रहे विमलनाथ किया और उन्हें अपूजनीय बताया है परंतु यह श्लोक जिस ग्रंथ का हैं उसके ठीक आगे का ही श्लोक यह है : "जेसिं निक्खेवो खलु सच्चो भावेण तेसिं चउरो वि । दव्वाइया सुद्धा हुंति, ण सुद्धा असुद्धस्स ॥" (१७) यह श्लोक १४४४ ग्रंथ के रचयिता सूरिपुरंदर हरिभद्रसूरि भगवंत रचित संबोध प्रकरण का है, जिसका अर्थ यह होता है कि जिसका भाव निक्षेप शुद्ध है, उसके द्रव्यादि चारों निक्षेप शुद्ध होतेहै यानि विमलनाथ भगवान का भाव पूज्य एवं पवित्र है तो उनका नाम, स्थापना, द्रव्य निक्षेप भी पूज्य एवं पवित्र होगा अर्थात् गृहस्थावस्था में भी विमलनाथ भगवान पूज्य होते -- आचार्यश्रीने गृहस्थावस्था में विमलनाथ भगवान को अपूजनीय बताया परंतु शायद उन्होंने जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के पाठ पर ध्यान नहीं दिया है ऐसा लगता है, क्योंकि जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के पंचम वक्षस्कार में बताया है कि ऋषभदेव भगवान का जन्म होने पर इन्द्र ने भक्ति भाव से शक्रस्तव द्वारा स्तवना की एवं मेरू पर्वत पर हजारों कलशों द्वारा जन्माभिषेक किया। उसके बाद भी विविध पूजाएं एवं स्तवना की । इससे तीर्थंकर के द्रव्य निक्षेप की पूजनीयता सिद्ध होती है। उसी तरह जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के द्वितीय वक्षस्कार में बताया कि आदिनाथ भगवान के निर्वाण पश्चात् इन्द्र महाराजा आदि उनके शरीर को प्रदक्षिणा करते है तथा क्षीरोदक से स्नान, गोशीर्ष चन्दन से लेप,वस्त्र अलंकार आदि से विभूषित करते हैं एवं अग्नि संस्कार के पश्चात् शेष रही हुई दाढाएँ एवं अस्थियों को देव यथायोग्य लेकर उनकी अर्चना आदि करते है। इस प्रकार आगम से हम जान सकेंगे कि चैतन्य शून्य शरीर एवं अस्थियां भी पूजनीय होती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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