SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९३ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा चौथे नंबर में दयानंद सरस्वती ने जैनियों से मूर्तिपूजा मानी है। जैनियों में युगांतरो से मूर्तिपूजा आती है। जिसके आगम साक्षी है इससे तो मूर्तिपूजा जैन धर्म में अनादिकालीन सिद्ध होती है, डोशीजी को खुद को ही आपत्ति है। (१) प्रथम प्रमाण में काका कालेलकर कहते हैं - निष्प्राण मूर्ति तो गलामां पत्थर बनीने डुबाडे छे'' यह उनकी अनुभव हीन वाणी हैं, जिसने घेवर नहीं चखा हो उसे उसके स्वाद का क्या पता ? मूर्तिपूजा भक्ति से शुभभावों के स्रोतों का अनुभव जिसने किया है, उनके लिये वे वचन अज्ञानतापूर्ण हैं। (२) दूसरे नंबर का उदाहरण भी कल्पनामात्र है । कोई प्रमाण नही है। ऐसे स्वतंत्र विचारकों के निराधार वचनों के कारण ही मूर्तिविरोधी पंथ निकले हैं। पू. ज्ञानसुंदरजी म. ने 'मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास' में शुरू में अंग्रेजी विद्वान् और दूसरे अनुभवी विद्वानों के अभिप्राय दिये हैं जिज्ञासु उन्हें देखकर निर्णय करें। मेची अधि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy