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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १८३ “परमेश्वरनी पासे कपूरथी दीवो करे तो अश्वमेघ यज्ञनुं फल पामे" यह पाठ है । श्राद्धविधिकार को यह उदाहरण देकर इतना ही बताना है कि लौकिक में अश्वमेघ का विशिष्ट कोटि का पुण्य मानते हैं, उतना पुण्य कर्पूर के दीप पूजा का होना वे बताते हैं । दीपक पूजा के महत्त्व की पुष्टि के लिये ही ग्रंथकारने यह बात बतायी है । इसमें कोई घोड़े होमने की बात ही नहीं है । I इसमें डोशीजी की अनीति देखिये - लौकिक शास्त्र में यह बात कही है, इस बात को ढँककर घोडे को होमने की बात जो लौकिक मिथ्यादृष्टियों की मान्यता है, उसे मूर्तिपूजकों के नाम पर थोप देते है । मिथ्याभाषण के मार्ग से स्वमत का समर्थन कर रहे स्थानकवासी साधु-साध्वी - श्रावकश्राविकाओं को मूर्तिपूजा का प्रतिपादन कर रहे अनेकानेक जैनाचार्यों द्वारा रचित अनेकविध सुंदरतम शास्त्रों-ग्रंथों से वंचित रहना पड़ता है, इसका हमें आत्मीय खेद है । Jain Education International आगरा में तह जि पूर्व भ पूर्व भ वर्तमान पर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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