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________________ १५ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा करीब ११० जिनमूर्तियां निकली थी और उनकी चौकी पर उटूंकित शिलालेखों में लिखे आचार्यों के नाम व श्री नंदीसूत्र व श्री हिमवंत पट्टावलियों में लिखे आचार्यों के नामों से प्राचीन जैन इतिहास प्रमाणित होता है, इससे भी जिनमूर्तियों की पुष्टि होती है। इतना लिखने पर भी वे जिनमंदिर-जिनमूर्ति विरोध को छोडते नहीं है, यह बडी आश्चर्यजनक बात है । जैनागमों में आए शब्द-चेइय, चेइय-जत्ता, जिणघर, जिणपडिमा, अरिहंत चेइयाणं, चेइयायतन, चैत्यवंदन, चैत्य, चेइयभत्ति, चेइयं, जिनस्तूप चेइयथूभ, इत्यादि शब्दों का मनगढंत, जीचाहा-मनमाना अर्थ करते हैं । भाषा कभी स्थिर नहीं रहती । शब्दों का प्रचलन समय के साथ बदलता है । जिसे आज हम 'मूर्ति' अथवा 'मंदिर' कहते हैं, आगमकारों ने उसी को 'चैत्य' कहा है । भोली जनता को 'चैत्य' का भिन्न अर्थ बताकर स्थानकवासी स्वयं को बचाने का प्रयत्न करते हैं। किसी जैनागम में, कोष या व्याकरण में 'चैत्य' के लिए ज्ञान शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है, जैसे ज्ञान के भेद में - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान इस प्रकार भेद लिखे हैं- न कि - मतिचैत्य, श्रुतंचैत्य, अवधिचैत्य, मनःपर्यवचैत्य केवलचैत्य आदि। फिर भी ये सभी संत आदि चेइय (चैत्य) का अर्थ ज्ञान करके- जिनमंदिर व मूर्ति का झूठा विरोध करते हैं। स्थानकवासी के गुरुवंदन के पाठ तिक्खुतो में "कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवांसामि" इसमें आया चेइयं (यानि हे गुरुदेव ! आप की मैं जिनमंदिर, जिनमूर्ति की तरह पर्युपासना (वंदन-पूजन सेवा-भक्ति) करता हूँ, ऐसा सच्चा अर्थ पलटकर चेइयं का अर्थ ज्ञान कर देते हैं । यानि इनको पाप का - असत्य का थोडा सा भी भय-डर नहीं है । इसी प्रकार ये लोग "जिन" शब्द का असत्य अर्थ कामदेव करते हैं और "जिनपडिमा" का अर्थ कामदेव की प्रतिमा करते है। जिन का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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