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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा अर्थ वीतराग, सर्वज्ञ, अरिहंत भगवान, तीर्थंकर ऐसा नहीं करते हैं । जब कि (१) जैनशास्त्रों की शैली में सर्वत्र "जिन' शब्द का अरिहंत ही अर्थ होता है। अन्यथा तो जैन यानि जिन को माननेवाला का अर्थ कामदेव को माननेवाला ऐसा भी हो सकता है। (२) देवलोक में जो जिनमूर्ति है - वह पद्मासनस्थ है, जबकि कामदेव की मूर्ति पद्मासन में कभी नहीं होती।। (३) कामदेव के ऋषभ-चंद्रानन-वारिषेण-वर्धमान नाम प्रसिद्ध नहीं है, जब कि देवलोक की मूर्तियों के ये चार नाम प्रसिद्ध हैं। (४) जिनप्रतिमा के आगे नमुत्थुणं बोला जाता है, और नमुत्थुणं से अरिहंत के सिवा किसी अन्य की स्तवना कहीं पर भी प्रसिद्ध नहीं है। (५) इन्द्र समकिती होते हैं - वे कामदेव का नमुत्थुणं से स्तवन करें यह कैसे संभव है? (६) कामदेव की मूर्ति का जिनागमों में विस्तार से वर्णन होना भी संभव नहीं। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि- जिनप्रतिमा का अर्थ अरिहंत की प्रतिमा ही है। परंतु सभी स्थानकवासी संत आदि उसका उलटा-गलत अर्थ कामदेव की प्रतिमा करते है, ताकि जिनमूर्तिपूजा मानने की आपत्ति न आए । एक झूठ छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं । उसी का अनुसरण हमारे स्थानकवासी बंधु कर रहे हैं । स्थानकवासी संप्रदाय के आद्य प्रेरक श्री लोकाशाह नाम के गृहस्थ के विषय में भी ये लोग बढ़ाचढ़ाकर, मन गढंत, असत्य बातें लिखते हैं । जबकि सत्य यह है कि - संस्कृत-प्राकृत की कोई जानकारी न होने के बाद भी श्री लोकाशाह के मात्र अक्षर अच्छे होने से वे आगम शास्त्र की कॉपिया लिखते थे। और उसको लिखने की महेनत का धन-वेतन उनको मिलता था। और इस धन (पैसे) के विषय में तथा नकल करने में गलतियाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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