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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
38. चैत्य शब्द के अर्थ → समीक्षा इस प्रकरण का उत्तर पू. लब्धिसूरिजी म. ने मूर्तिमंडन परिशिष्ट में दिया है उन्ही के शब्दो में
.....चैत्य शब्द के अर्थ की मगजमारी की है सार कुछ नही निकाल सके। भले ही चैत्य शब्द के अनेक अर्थ हों परंतु सूत्र के पाठों में प्रभुमूर्ति का ही विशेष अधिकार आता है, चैत्य शब्द केवल ही हो, तो मूर्ति और व्यन्तर-यक्ष आदि शब्द आदि में रखे हुए हों तो उनकी मूर्तियों को भी ले सकते हैं । बाग बगीचे का नाम चैत्य तो जिस बाग में यक्षादि का मंदिर हो उसी बाग को चैत्य कह सकते हैं अन्य को नहीं । इससे कोई अर्थ बढ़ा नहीं, व्याकरण शास्त्र शिरोमणि न्यायविशारद हेमचंद्राचार्य महाराज के कोश के अनुसार ही हमारे पूज्य गुरूदेव श्री विजयानंदसूरीश्वर म. ने अर्थ लिखा है और इन तीन अर्थ के योग से ही अनेक अर्थ बन जाए तो भी मुख्य इन तीनों अर्थ का प्रभाव है. इसलिए पूज्य गुरूदेवजी का लिखना बराबर है। सूत्रों में अमुक भगवान् के इतने अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी ऐसा पाठ है मगर इतने अवधिचैत्यी, मनःपर्यवचैत्यी नहीं आता ऐसे ही केवल साधुपद के लिये कहीं भी चैत्य शब्द का उपयोग नही किया, इससे सिद्ध होता है की चैत्य शब्द का अर्थ साधु और ज्ञान करके स्थानकवासी लोग प्रभुमूर्ति से विरोध करने के व्यसन को पुष्ट कर रहे हैं और अभिनिवेशिक मिथ्यात्व को सिद्ध कर रहे हैं, अन्यथा अनेक अर्थों में चैत्य शब्द का अर्थ प्रभुमूर्ति भी हो सकता है उसको क्यों नही मानते, कहना ही होगा की अभिनिवेश मिथ्यात्व नहीं मानने देता, प्यारे बंधुओं ! अभिनिवेश को छोड़िए और प्रभु की आज्ञा में प्रीति को जोडिए । नाहक मे इधर ऊधर कुतर्क के मार्ग में मत दोड़िए."
इस प्रकरण में डोशीजीने चैत्य का साधु अर्थ बताने हेतु दो पाठ दिये हैं वे अपूर्ण पाठ देकर भोले जनों की आँखो में धूल डाल रहे हैं । प्रथम पूर्ण पाठ इस प्रकार
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