________________
१६८
. जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा करा सकते, ऐसा बताया गया है। वस्तुतः उसी को मानना उसी का खंडन करना यह आपकी पद्धति आपके पूर्वजों से चली आई है । क्या आपके साधु जीवदया का उपदेश नहीं देते ? उस उपदेश से प्रवृत्त श्रावक गायों को घास डालते हैं, कबूतर आदि को धान्य डालते हैं, उसमें हिंसा नहीं होती? इससे सिद्ध हैं उस उपदेश पद्धति का सहारा लेते हुए भी उसी का आप खंडन करते हैं । कितनी कृतघ्नता !
शिथिलाचार की बात तो स्थानकवासी पंथ में भी समानरूप से लागू होती है यह विचार डोशीजी को नहीं आया ? आपके पंथ के अधिकांश साधुवर्ग की शिथिलता आप वाले ही 'सम्यग्दर्शन' मासिक पत्र में बारबार प्रकट करते रहते हैं, जिस का विस्तार निंदास्वरूप होने से यहाँ करने की आवश्यकता नहीं है । वाचक गण 'सम्यग्दर्शन' मासिक पत्र से उसे जान लें।
(
SNA
चारित्र
FDIN
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org